Monday, May 14, 2012

उसने थामा था हाथ मेरा

एक रोज़ उसने थामा था हाथ मेरा
मेरे हाथ से उसके हाथ की खुशबु नहीं जाती

वो बहुत प्यार से पुकारते थे नाम मेरा
मेरे कानो से उनकी वो आवाज़ नहीं जाती

मैं बुलाता भी नहीं था और वो आ जाते थे
अब बोलने पर भी मेरी आवाज़ उन तक नहीं जाती

बस चुके हैं वो मेरी नस नस मैं लहू की तरह
मेरी उल्फत उनकी रूह में उतर क्यों नहीं जाती.?

मैं जानता हूँ ये शहर ये रास्ते उनके नहीं
फिर भी मेरी आँखों से इंतज़ार की आदत नहीं जाती......

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