एक रोज़ उसने थामा था हाथ मेरा
मेरे हाथ से उसके हाथ की खुशबु नहीं जाती
वो बहुत प्यार से पुकारते थे नाम मेरा
मेरे कानो से उनकी वो आवाज़ नहीं जाती
मैं बुलाता भी नहीं था और वो आ जाते थे
अब बोलने पर भी मेरी आवाज़ उन तक नहीं जाती
बस चुके हैं वो मेरी नस नस मैं लहू की तरह
मेरी उल्फत उनकी रूह में उतर क्यों नहीं जाती.?
मैं जानता हूँ ये शहर ये रास्ते उनके नहीं
फिर भी मेरी आँखों से इंतज़ार की आदत नहीं जाती......
मेरे हाथ से उसके हाथ की खुशबु नहीं जाती
वो बहुत प्यार से पुकारते थे नाम मेरा
मेरे कानो से उनकी वो आवाज़ नहीं जाती
मैं बुलाता भी नहीं था और वो आ जाते थे
अब बोलने पर भी मेरी आवाज़ उन तक नहीं जाती
बस चुके हैं वो मेरी नस नस मैं लहू की तरह
मेरी उल्फत उनकी रूह में उतर क्यों नहीं जाती.?
मैं जानता हूँ ये शहर ये रास्ते उनके नहीं
फिर भी मेरी आँखों से इंतज़ार की आदत नहीं जाती......
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