दिल का गुनाह सिर्फ़ ये कि तू पसंद था...
वरना इरादा अपना भी काफी बलंद था...
ये कि़स्मतों की बात है तू है मुकाम पे....
हम जिस जगह खड़े थे वो दरवाज़ा बंद था...
माना कि हसरतों की आग से जला है दिल...
लेकिन न अपनी कोशिशों में दंदफंद था....
हमको तो अपने हौसलों की ही उड़ान है....
यूँ मिल्कियत में अपनी तो बस मूलकंद था...
थी जीत उनके साथ अपने साथ हार थी....
लेकिन शिकस्त का हमें अहसास मंद था..!!
वरना इरादा अपना भी काफी बलंद था...
ये कि़स्मतों की बात है तू है मुकाम पे....
हम जिस जगह खड़े थे वो दरवाज़ा बंद था...
माना कि हसरतों की आग से जला है दिल...
लेकिन न अपनी कोशिशों में दंदफंद था....
हमको तो अपने हौसलों की ही उड़ान है....
यूँ मिल्कियत में अपनी तो बस मूलकंद था...
थी जीत उनके साथ अपने साथ हार थी....
लेकिन शिकस्त का हमें अहसास मंद था..!!
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