Wednesday, April 15, 2015

अजीब आग है

ग़मों की आयतें शब भर छतों पे चलती हैं
इमाम बाड़ों से सैदानियाँ निकलती हैं
उदासियों को सदा दिल के ताक में रखना
ये मोमबत्तियाँ हैं, फ़ुर्सतों में जलती हैं

रसोई घर में ये अहसास रोज होता है
तिरी दुआओं के पंखे हवायें झलती हैं
अजीब आग है हमदर्दियों के मौसम की
ग़रीब बस्तियाँ बरसात ही में जलती हैं
ये उलझनें भी ज़रूरी हैं ज़िन्दगी के लिये
समन्दर में यूँ ही मछलियाँ मचलती हैं

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