कोई शाम से पहले मचल तो बैठा है,
ग़म को बना कर ग़ज़ल तो बैठा है....
उसकी गली में जाने का ख्याल लिए
दीवाना भी घर से निकल तो बैठा है.....
मंजिल खुदा ने जाने कहाँ छुपा रखी,
चलने वाला कई राहें बदल तो बैठा है....
जानता है ये राह-ऐ-इश्क का मिजाज,
दिल ठोकरे खाकर, संभल तो बैठा है...
अभी जाने कितने रूप धरना बाकि है,
हर आरजू की बनके नक़ल तो बैठा है...
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