Tuesday, April 7, 2015

काँच की चूड़ियाँ

ख़त में बारीकियाँ चमकती हैं...
फूल सी उँगलियाँ चमकती हैं...|
चाँद सो कर उठा है कमरे में...
दूर से खिड़कियाँ चमकती हैं...|
घर में इक रोशनी सी होती है...
काँच की चूड़ियाँ चमकती हैं...|
मेरे हाथों की इन लकीरों में...
मेरी महरूमियाँ चमकती है....|

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