Tuesday, May 31, 2011

मुस्कराकर लूटने का हुनर,

दिन भर उसके इंतज़ार का असर रहा,
कोई रात भर नींदों से बे-खबर रहा....

मैं तो उसीको अपना खुदा कर चला,
झुका हुआ सजदे में हमेशा सर रहा....

कभी मंजिल कभी हमसफ़र खो दिया,
अधूरा अधूरा सा, मेरा हर सफ़र रहा.....

हाय, उसका मुस्कराकर लूटने का हुनर,
ख़ुशी ख़ुशी लुटता मैं भी उम्र भर रहा...

मिट्टी के घर वाले, गाँव सांस लेते रहे,
मुर्दा मुर्दा सा, इमारतों का ये शहर रहा..........

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