Tuesday, May 31, 2011

दास्तान-ऐ-मुहब्बत


दास्तान-ऐ-मुहब्बत कुछ यूँ सुनानी चाहिए,
हंसी होठों पर, और आंखों में पानी चाहिए.....

न गीता-पुरान, न ग्रन्थ-कुरान, जीने के लिए,
ढाई आखर की बस बात समझ आनी चाहिए....

प्यार और हवस में जो, फर्क मालूम कर सके,
आज के दौर में लड़की, इतनी तो सयानी चाहिए...

क्या पूछते हो मेरी इन आँखों की सुर्खी का राज़,
मेरे महबूब को कोई मुहब्बत की निशानी चाहिए......

राम, कृष्ण, इस युग में भी जरुर मिल जायेंगे,
कबीर सा कोई दीवाना, मीरा सी दिवानी चाहिए...

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