Tuesday, April 10, 2012

न समझा तमाम उम्र हमें

जो भी ज्यादा या कम समझतें हैं ,

तुम को बस एक हम समझतें हैं,

हम ठहाकों का दर्द जीतें हैं ,

लोग आँसूं को गम समझतें हैं,

इसलिए बिस्तरा नहीं करते ,

खवाब आखों को नम समझतें हैं,

जो न समझा तमाम उम्र हमें ,

हम उसे दम ब दम समझतें हैं.... !!

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