Saturday, November 26, 2011

बगावत

चुपके से कोई घर को सजाने के लिए हो
इस बार कोई हम को मनाने के लिए हो

दुश्मनी तो तुमने कर के देख ली बहुत
अब कुछ तो महोब्बत को बढाने के लिए हो

ये सच हैं हमें नींद भी आ जायेगी उस शब्
तैयार वो गर ख्वाब में आने के लिए हो

इस बार भी मेहमान बुलाये नहीं घर पे
अब कुछ तो गरीबी को छुपाने के लिए हो

करते ना बगावत तो भला और क्या करते
कोई अपनी भी तो सुनने सुनाने के लिए हो.

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