उसी का ज़िक्र है जब भी कही कोई बात चलती है
चले जो बात उसकी फिर तो सारी रात चलती है
थमे जो वो कभी रुक जाती है धड़कने दिल की
चले जो वो तो फिर साथ मे कायनात चलती है
उसी के दीद की खातिर निकलता है वो चंदा भी
उसे छूने की खातिर धीमे से बरसात चलती हैं
वो निकले धूप में तो साये को सूरज भी छुप जाये
कभी जो धूप भी हो तो घटायें साथ चलती है
महकती है ये वादियाँ उसी से खुशबुएँ लेकर
उसी से रंग लेने को फिजायें साथ चलती हैं
उसी के नूर से रौशन हैं सूरज चाँद तारे सब
निकलता दिन उसी के नाम से ही रात चलती है
हिलें जो लब कहीं उसके तो जैसे फूल खिलते है
उसी की धडकनों से मौसमों की सांस चलती है
उसी के नाम की गूंजे है मंदिर के जरस में भी
जो आयत में उसे पढ़ ले खुदाई साथ चलती है
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