Saturday, November 26, 2011

तहजीब

जिसका किया जिक्र सुबह-शाम उम्र भर
उसने ना लिया कभी मेरा नाम उम्र भर

इश्क में कुछ तो तहजीब भी होगी
हम यही सोच के रहे बदनाम उम्र भर

वो रूठा रोंज हम मनाते रहे रोंज
दोनों को रहा एक यहीं काम उम्र भर

पूछेगा खैरियत आकर वो एक दिन
ये सोच के मैं रहा नीमजान उम्र भर

सताता हैं बुजुर्गों को मगर ये नहीं सोचा
कोई ना रहा आज तक जवान उम्र भर

रख के सर पे हाथ मुझे बचाया हैं रोंज
कोई तो रहा मेरा सायेबान उम्र भर

घर दोस्ती से जिसने औरों के भर दिए
दिल उसका रहा खाली सा मकान उम्र भर

ढल जाएगी ये रात और आएगा सवेरा
रहती हैं धूप और ना कभी छाव उम्र भर

आयी जो मुफलिसी तो हमें भूल गया वो
आये थे जिसके हम काम उम्र भर

पैर अपनी माँ के दबाये थे जिसने रोंज
दुनिया ने किया उसका एहतिराम उम्र भर

झूटों के तो दुनिया में शीश महल बन गये
हमसे ना बना सच का एक मकान उम्र भर

एक बात चुभ रही हैं गौर करना दोस्तों
क्यूँ लुटता रहा अपना हिंदुस्तान उम्र भर

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