Saturday, November 26, 2011

बुरा लगा

हमसफ़र ना था जिसमे तू वो सफ़र..बुरा लगा
बिन तेरे हम को हर एक हमसफ़र..बुरा लगा

मुकम्मल था मगर उसमे तेरा नाम ना आया
बस हमको वो एक शेर उम्र- भर.....बुरा लगा

दुश्मन फरेब देते तो कुछ बात ना होती
काटा हैं अजीजों ने मेरा सर.....बुरा लगा

बरसों में सजाया था जिसे हमने रात दिन
हिस्सों में बटता आज अपना घर....बुरा लगा

सूरज की सवारी का उसे शौंक था शायद
देखा जो परिन्दे का टूटा पर......बुरा लगा

फाकों ने इन हाथों की लकीरें भी मिटा दी
क्या दिया किताबों ने देख कर.....बुरा लगा

एक उम्र हुई भूल चुके थे उसे "अयान"
वो याद आया फिर से रात भर......बुरा लगा

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