ज़हन मैं पानी के बादल अगर आये होते
मैंने मिटटी के घरोंदें ना बनाये होते
धूप के एक ही मौसम ने जिन्हें तोड़ दिया
इतने नाजुक भी ये रिश्तें ना बनाये होते
डूबते शहर मे मिटटी का मकाँ गिरता है
तुम ये सोच के मेरी और तो आये होते
धूप के शहर मे एक उम्र ना जलना पड़ता
काश हम भी किसी पेड़ के साए होते
फल पडोसी के दरख्तों पे ना पकते
मेरे आँगन मे ये पत्थर भी ना आये होते
मैंने मिटटी के घरोंदें ना बनाये होते
धूप के एक ही मौसम ने जिन्हें तोड़ दिया
इतने नाजुक भी ये रिश्तें ना बनाये होते
डूबते शहर मे मिटटी का मकाँ गिरता है
तुम ये सोच के मेरी और तो आये होते
धूप के शहर मे एक उम्र ना जलना पड़ता
काश हम भी किसी पेड़ के साए होते
फल पडोसी के दरख्तों पे ना पकते
मेरे आँगन मे ये पत्थर भी ना आये होते
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