Wednesday, May 27, 2015

कभी कभी

अजीब लगती है ये शाम कभी कभी
ज़िंदगी लगती है ये बेजान कभी कभी
समझ में आये तो हमें भी बताना
क्यों करती है ये यादे परेशान कभी कभी

एक एक पल सिसक रहा होगा

कालोनी के मैरिज हाल में आज एक शादी है...वही आये हुए है...बढ़िया इंतजाम किया गया है...अच्छी खासी चहल पहल है...पानी के फव्वारे रंग बिरंगे पानी उगल रहे है..आतिशबाजी से आकाश रोशन सा हो रहा है...हँसते मुस्कुराते चेहरों का मजमा लगा हुआ है.. खानों की खुसबू से माहौल महक रहा है...फिर से एक जोड़े आज एक बन्धन में बंध जाएंगे...पर मेरा ध्यान एकाएक इन सब से हट के उस सख्स की तरफ चला गया जो इन सब चोचलो से दूर कही गम के नशे में चूर होकर अपनी चाहत की चारदीवारी में कैद दिल के टूटे टुकड़ों को एक एक कर समेटता हुआ क्या खोया क्या पाया का हिसाब किताब लगा रहा होगा...
सजते हुए सपनों के बीच उस बिखरते हुए एहसासों को कौन देखता है...
खैर छोड़ो ये कोई नया किस्सा तो है नही जमाने से यही होता आया है और यही होता भी रहेगा...अपन को क्या करना है अपन पहले बिरयानी और आइस क्रीम पर कन्सन्ट्रेट करते है..
ऐ भाई खाली चावल ही दोगे का बिरयानी में लेग पिसवा कौन डालेगा जी..
बिरयानी के खुशबूदार चावल में लिपटी उंगलियां बखूबी अपने कार्य को अंजाम दे रही है और खोजी नजरों ने कोने में लगे आइसक्रीम के स्टाल को भी देख लिया था...पर मन के चादर पर रह रह के उस सख्स के लिए सहानभूति की सिलवटे पड़ जा रही है जो कही दूर बैठा हुआ एक एक पल सिसक रहा होगा!

Tuesday, May 26, 2015

Noor Tera

Na ho Jis Mein Noor Tera
Woh Chiraag Hee bhoojha doon.

Mujhe bhool Jaya Duniya...
Mein Agar Tujhe Bhula Doon.

Meri Ishiq Keh Rahi Hai...
Tujhe Khuda Banadoon.

Tera Naam loun Zubaa se...
Tere Aage Sarr Jhuka Doon

प्यार बढ़ता है

उसे वो लड़की पसंद आ गयी थी ,क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी ???उसने पूछा
वो मान गयी ! वो फिर उसे एक रेस्टरां में ले गया ! अभी पढ़ ही रहा था इसलिए जेब में ज़्यादा पैसे भी नहीं थे ! पर बैरा आया और उसने पूछा तो उसे दो मैंगो शेक का आर्डर दे ही दिया .
गर्मी काफी थी वो दोनों एक दूसरे को देख कर धीरे धीरे बाते करते रहे ,लड़की सकुचा रही थी हाँ हूँ कर देती थी कभी कभी !वेटर उनका पेय ले आया था !लम्बे गिलास एक कांच का स्टेरेर ,
एक खिलौना छतरी और एक स्ट्रॉ लगा था !देखने में बहुत आकर्षक लग रहा था सब ,माहौल भी अच्छा ,धीमा धीमा संगीत ,हलकी रौशनी लिए अँधेरा !उसने अपना गिलास लिया और सारा पी गया लड़की ने अभी शुरू भी नहीं किया था ,
पर ठंडा मीठा पेय उसके लिए तो थोड़ा रह गया था उसने अपने गिलास से स्ट्रॉ निकला ,लड़की के गिलास में डाला और बोला "अब मैं तेरा जूठा पियूँगा ,पता है ऐसा करने से प्यार बढ़ता है"

सुरूर

ताल मूवी देखे हुए काफी टाइम हो गया है ,
लेकिन आज भी जब बारिशों में भीगते हुए घास के हरे मैदान देखता हूँ, या जब भी दिमाग में सुरूर सा आता है, तो मुझे ये गाना और यही सीन याद आते हैं,
ऐश्वर्या राय मुझे ख़ास पसंद नहीं रही, ख़ास कर "खाकी" में इन्स्पेक्टर शेखर यानी अक्षय कुमार को मरवा देने के बाद से तो बिलकुल भी नहीं. लेकिन जब भी बारिश होती है
तो यही दिमाग में आता है और साथ में स्केट्स पे दोनों हाथ फैला के बारिश में चलता हुआ मै खुद को अक्षय खन्ना समझने लगता हू...

पंख निकल आये थे

वो एक खुबसूरत सी तेज और ताकतवर मेहनती चींटी थी |
वो फूट फूट कर रोई थी जब उसने सुना कि
बांबी की हिफाजत करते जिस मजबूत चीटे को वो प्यार करती थी उसके पंख निकल आये थे |
पंख वाले चींटे अब रोशनी से दिल लगाते थे |
उनकी लाशें अक्सर दीयों , लेम्पों और रात में जलते बल्बों के आस पास मिलती थी जिनमे आग के निशाँ होते थे |
लोग कयास लगते थे कि ये दिल लगाने का अंजाम है या दिल तोड़ने का ।

अब आया मजा बच्चू

बचपन में बुखार आया था, मम्मी कॉलोनी में ही एक फिजिशियन थे उनके पास ले गई, डॉक्टर साहब ने देख कर कहा
" हुम्म, मलेरिया है, इंजेक्शन लगेंगे"
(तभी क्लिनिक में लगे हरे परदे के पीछे से जोर की आवाज आई)
"पापाआआअ, अईई, सुबुक सुबुक"
2 मिनिट बाद कॉलोनी में ही रहने वाले शर्मा अंकल अपनी बेटी रानू के साथ बाहर आये, रानू भें! भें! कर के रो रही थी, लेकिन मुझे देखते ही चुप हो गई, क्युकी मै मुस्कुरा रहा था। डॉक्टर साहब बोले "इसे भी मलेरिया ही है"
मम्मी ने कहा-मेरे बेटे को तो टेबलेट्स और मीठी दवाई ही लिख दीजिये।
(मैंने रानू की ओर देखा वो मुझे यु देख रही थी जैसे कह रही हो 'डरपोक' ये तो इज्जत का सवाल हो गया मैंने कहा)
"नहीं मम्मी मै नहीं डरता, सर मुझे जल्दी ठीक होना है आप तो मुझे इंजेक्शन ही लिख दीजिये"
(अब परदे के पीछे मै था, आवाज आई "मम्मीईईईईई इ इ इ", बाहर आया तो रानू मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी, जैसे कह रही हो 'अब आया मजा बच्चू')

मोहब्बत का नशा


मोहब्बत का नशा भी अज़ब सा है.. बिना कुछ पिए चढ़ जाता है.. हर पल में जीने का एहसास सा होता है..
छोटी-2 खुशिया भी बड़ी सी लगने लगती है.. उस'से बात हो ना हो, एक मेसेज आने से शाम बन जाती है..
कोयल की आवाज़ भी बाहर वाले पेड़ से सुनाई देने लगी है.. हवाओं में भी अलग सी सरसराहट महसूस होती है..
कानो में हलके से उसकी आवाज़ सुनाई पड़ जाती है.. उसकी मुस्कराहट से अच्छा कोई संगीत लगता ही नहीं है...
राह चलते अक्सर उसकी झलक दिख जाती है.. दिल जानता है वो नहीं है अभी यहाँ, फिर भी भीड़ में उसी के चेहरे
को जाने क्यों ये दिल तलाश करता है.. जब से बताया है उसे अपने दिल का हाल, तब से सारे हाल बेहाल से लगते है..
अपनी तरफ से पूरी कोशिश हो चुकी है, अब उसके इनकार या इकरार की देर है.. साला ये इंतज़ार भी बड़ी कुत्ती चीज़ है..
मज़े के साथ-2 बेकरारी भी बढ़ा देती है.. खैर हां या ना की फ़िक्र ना करके बस इस पल का मज़ा लिए जा रहे है.. प्यार है
भी और नहीं भी, ये भी बड़ा सा कन्फ्यूजन है.. दोस्ती में प्यार या प्यार में दोस्ती, इसी में लगे है.. सबसे अच्छा दोस्त ही
अगर हमसफ़र बन जाए तो फिर मंजिल तक पहुचने में बड़ा मज़ा आये.. मतलब फीलिंग ही ऐसी है की कलम उठाकर कुछ भी लिख दो..
वैसे एक बात तो रह ही गई.. आज पूर्णिमा का चाँद भी कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा है ।।।।

जब साथ हो नशा शराब का

लौंडे शराब के नशे में ही अच्छे इंसान नज़र आते है
बिछड़े दोस्त को गाली दे गले लगाते है
अपनी पुरानी माशूका को
फोन कर दिल का हाल बताते है
जुबां पे पूरी सच्चाई लाते है
पुराने गाने सुनते है, गुनगुनाते है
और अंतहीन यादो में खो जाते है
दिखावटी दुनिया जो झूठी बाते रखती जाती है
उसे ये लौंडे ब्लेंडर्स के नशे में खोले जाते है
"कोई प्रपंच नहीं
कोई मोह नहीं
जब साथ हो नशा शराब का
तो फिक्र की कोई लोड नहीं " चियर्स।

मैं ऐसा ही हूँ.

मैं ऐसा ही हूँ..
थोड़ा शरारती हूँ..
थोड़ा शर्मीला..
गाने पे तुम्हारे सामने नाच नहीं सकता..
बस वो गाना कैसेट में रिकॉर्ड करा के तुम्हे दे सकता हूँ..
और अपने कमरे में..
पढाई खत्म करने के बाद..
उस गाने पे नाच भी सकता हूँ..
तुम्हारे सामने आऊंगा..तो
हकला जाऊँगा..
इसीलिए चुप रहता हूँ..
और मुस्कुरा के तुम्हे देखता रहता हूँ..

Monday, May 18, 2015

गीला चाँद

रात की काली चादर पे अब सोया है चमकीला चाँद,
तेरे प्यार की ओस में भीगा थोड़ा थोड़ा गीला चाँद ..

तेरी चुप्पी

तेरी चुप्पी ...जैसे सूरज गुस्से में तमतमाए
तेरी चुप्पी ....जैसे चलते चलते हवा रुक जाए
तेरी चुप्पी ....जैसे बात बेबात आँख अश्क बहाए
तेरी चुप्पी ...जैसे लू , हाल बेहाल कर जाए
तेरी चुप्पी.....जैसे ज़िंदगी मेरी रुकने लग जाए
तेरी चुप्पी....जैसे खामोशी मुझे चीरती जाए
तेरी चुप्पी....जैसे सोखता जो हर खुशी सोखे जाए
तेरी चुप्पी ... जैसे रेत की आंधी जो सब उड़ा ले जा
तेरी चुप्पी...............चुपचाप कहर ढाए

लड़ो झगडो ..कहो सुनो ...पर,बोलो ....
मुझसे अब यह सब सहा नहीं जाए

Friday, May 15, 2015

रिसाइकिल बिन

लड़के ने उसे सौ मेले भेजे। उनके सीक्रेट मेल पर। उस सीक्रेट मेल का पासवर्ड दोनों के पास था। वो रोज दिन में दस बार देखता कि मेल पढ़ी गई या नहीं। तीन महीने तक मेल्‍स ऐसे ही अनपढ़ी पड़ी रहीं। आखिरकार एक दिन उसने सबकुछ डिलिट कर दिया। उसके बाद भी मेल्‍स रिसाइकिल बिन में पड़ी रहीं। अनरेड का निशान दिखाती हुई ..
काले बोल्‍ड अक्षरों में लिखा होता रिसाइकिल बिन के सामने 101..
फिर एक दिन अचानक मेल खोला तो वो काले बोल्‍ड अक्षर नहीं दिखे। उसने खुशी और बेचैनी में सोचा शायद सब पढ़ ली गईं। वो कुछ सेकेंड जिंदगी के थे।
जिंदगी के कुछ सेकेंड बीत जाने की हड़बड़ी में थे।
फिर उसने रिसाइकिल बिन खोला, लेकिन अब वहां कोई मेल नहीं थी।
रिसाइकिल बिन से सारी मेल एक महीने में खुद ब खुद डिलिट हो जाती थी ना ।

Wednesday, May 13, 2015

Qayamat Ho Gai Barpa

Ghazab Aaya, Sitam Tota, Qayamat Ho Gai Barpa....
Faqat Itna Hi Puchha Tha, Kahan Masroof Rehte Ho..

दिल का रिश्ता

टुट जाते है---
सारे रिश्ते ---
वक्त के--
थपैङो से---
टुटता नही---
दिल का रिश्ता---
आंधियो के---
घेरो से---

Wabasta

Mat Chhodh Wo Mohabbat Jo Teri Zaat Se Hai,
Yeh Bata Tu Khafa Meri Kis Baat Se Hai,
Tu Bhi Na Uljha Kar Mujh Se Is Tarha,
Jb Tu Achi Tarha Waqif Mere Mizaaj Se Hai,
Mai Kaise Ji Loon Tum Se Rooth Kr,
Meri Har Saans Wabasta Teri Yaad Se Hai …

हम कहाँ आ गये .. !

हमने देखा चिड़िया को उसकी चोंच में कुछ तिनके थे
और पेड़ पर लटका था उसका अधूरा घोंसला।
चिड़िया गिनती नहीं जानती थी मगर
अपने अनगिनत सपनो को बुनकर तिनके संजो रही थी
इसलिये बरसों का हिसाब नहीं रखती थी
जब वह नई-नई पिंजरे में बंद हुई थी पर एक बात वह समझती हैं कि
आँगन में खूब धूप आती थी और दूर दिखाई देता था उसका पेड़।
और आज .......
चिड़िया के देखते ही देखते हर ओर बड़ी-बडी़ इमारतें खडी हो गई
जिनके पीछे उसका सूरज खो गया और खो गया वह पेड़ जिस पर
चिड़िया एक सपना बुन रही थी
चिड़िया की आँखों मे
रह-रह कर घूमता है
अपना वो ख्वाब और अधूरा घोंसला।

Tuesday, May 12, 2015

सदा सिसकियों की

खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
हॅंसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
गुलामी की बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
खुदा ऐसे एहसास का नाम है
रह सामने और दिखाई न दे

वही जाम है

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आएगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी की ग़ुलाम है
मैं ये मानता हूँ मेरे दिए तेरी आँधियोँ ने बुझा दिए
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

मेरे जैसा तू भी है

खूब निभेगी हम दोनों मे, मेरे जैसा तू भी है,
थोड़ा झूठा मैं भी ठहरा, थोड़ा झूठा तू भी है,
जंग अना की हार ही जाना बेहतर है अब लड़ने से,
मैं भी हूं टूटा टूटा सा बिखरा बिखरा तू भी है,
इक मुद्दत से फासला क़ायम सिर्फ हमारे बीच ही क्यूं,
सबसे मिलता रहता हूं मैं सबसे मिलता तू भी है,
अपने अपने दिल के अंदर सिमटे हुये हैं हम दोनो,
गुमसुम गुमसुम मैं भी बहुत हूं खोया खोया तू भी है...

सज़ायें न दे

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे
चांदनी रात को बद-दुआयें न दे
फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले
तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार करने लगें
इस क़दर ख़ुबसूरत सज़ायें न दे
मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे
मैं बिखर जाऊँगा आँसूओं की तरह
इस क़दर प्यार से बद-दुआयें न दे

Thursday, May 7, 2015

वक्त कब आयेगा

नींद हमे अब आती नही
और चैन भी शायद ही आयेगा
आखरी साँस तुम्हारी बाँहो में लूँ
खुदा जाने मेरा वो वक्त कब आयेगा
एक अजीब सी हठ करने
लगा है मेरा पागल दिल आजकल
रोज़ कहता है तू इंतजार कर
वो जरूर आयेगा
लाख कोशिश करता हूँ
बिना याद किये सोने की
पर अजीब हाल है हमारा
नींद भी तभी आयेगी
जब तेरा ख्याल आयेगा
कौन सी कला सीखी है
तुमने नींद चुराने की
हमे भी सिखा दो,हमारे ना सही
किसी और के काम ये गुण आयेगा
पल पल में पलके भीग जाती है
हर आहट पर लगता है
मेरा यार जरूर आयेगा
अब सब्र करना सिखा रहा हूँ दिल को
क्योकि उन्होंने कहा था
"वक्त आयेगा पर वक्त पर ही आयेगा"

मगर कैसे

बहम सब दूर किये यारों ने सच मगर कैसे,
पर्दा-ए-फरेब यूं हटा जाकर अब मगर कैसे?
धोखा देना ही बन गई थी फितरत जिनकी,
बाज आएंगे अपनी हरकत से वो मगर कैसे?
चला था बज़्म ढूंढने को मैं इंसानी बस्ती में,
कदम-कदम पे मिले आदमी जब मगर कैसे।
जिनकी आदत में और नीयत में भी धोखा है,
सोचते अब वही धोखा तो हुआ मगर कैसे।
भटकते हैं तलाश-ए-ख़ुशी में रंज देके औरों को,
सकून मिल न पायेगा उनको कभी मगर ऐसे.
रिस्ता-ए-दोस्ती है कायम यकीनो-ऐतबार पर,
ये अक्शे-आइना है मगर दिखेगा ही जैसे तैसे।
चढ़ी एक बार हांडी काठ की चूल्हे पे गर तेरी,
बमुश्किल ख़ाक हाथ आएगी वो भी जैसे तैसे।
मैं सब को यार मानता गया ये सोच कर 'अली'
झूट होगा तो मुक़ाबिल आईने के टिकेगा कैसे?

कुछ कमी है

क्यों ये लगता है...कुछ कमी है
बात कोई लबों तक आकर रुकी है...
जाने किस बात पर पलकें झुकी है
आँखो में भी क्यों हल्की नमी है...
कौन सी बात दिल को लगी है
उसकी वफ़ा का आज भी य़की है...
कुछ ही लम्हे बस अपने साथ है
ज़िदग़ी हर पल फिसलती ही रही है...
साँसो में उमड़ती जज़्बातो की नदी है
धड़कती रहती सीने में एक सदी है...
रोशनी क्यों अधेंरो से यूँ घिरी है
आख़िर किस बात की सजा मिली है...

वास्तव में यह जिंदगी है

एक पिता अपने बेटे के साथ पहाड़ों की सैर पर निकला। अचानक बेटा गिर गया। चोट लगने पर उसके मुंह से
निकला , ' आह !!!'
तुरंत पहाड़ों में से कहीं - से आवाज
आई - ' आह !!!'
बेटा अचरज में रह गया। उसने फौरन पूछा - तुम कौन हो ?
सामने से वही सवाल आया , 'तुम कौन हो ?'
बेटा चिल्लाया , ' मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं !'
पहाड़ों से जवाब आया , ' मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं !'
अपनी बात की नकल करते देखकर बेटा गुस्से में चिल्लाया , '
डरपोक !'
जवाब मिला , ' डरपोक !'
उसने पिता की ओर देखा और पूछा , ' यह क्या हो रहा है ?'
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा , ' बेटा , जरा ध्यान दो। '
इसके बाद पिता चिल्लाया , ' तुम चैंपियन हो !'
जवाब मिला , ' तुम चैंपियन हो !'
बेटे को हैरानी हुई लेकिन वह कुछ समझ नहीं सका।
इस पर पिता ने उसे समझाया , ' लोग इसे गूंज ( इको ) कहते हैं ,
लेकिन वास्तव में यह जिंदगी है। '
यह आपको हर चीज़ वापस लौटाती है , जो आप कहते हैं या करते
हैं। हमारी जिंदगी हमारे कामों का ही प्रतिबिंब है। अगर आप
दुनिया में ज्यादा प्यार पाना चाहते हैं
तो अपने दिल में ज्यादा प्यार पैदा करें। अगर अपनी टीम में ज्यादा काबिलियत चाहते हैं तो अपनी काबिलियत को
बढ़ाएं।
यह संबंध जिंदगी के हर पहलू , हर चीज में नजर आता है।

Wednesday, May 6, 2015

-नागफनी (बुनियाद)-

ज़मीन खोदकर उसने रोटी बोई खुश हुआ, अब सात पुश्तों की भूख मिट जायेगी जब पेड़ उगा तो नागफनी निकला, रोटी के साथ कांटे थे  उसकी नींद खुल गयी, " शुक्र है , सपना था "....
मन घबराने लगा ,सो कमरे से बाहर निकल आया  निम्न मध्यम वर्ग की इस बस्ती में एक छोटी अँधेरी कोठडी से शुरू हुयी थी उसकी जीवन लीला  अफीमची बाप और कलपती माँ के साए में कई रातें भूख में कटीं  बस तभी ठान लिया था उसने , " जो हो सो हो , पर अपने घर में रोटी की कमी ना होने दूंगा "
उसी दिन अपने सपनो की बुनियाद में उसने रोटी भर दी..
जो भी, जैसा भी उल्टा सीधा काम मिला, करता गया गैर कानूनी काम करते हुए वह धड़ाधड़ ऊंचाईयां चढ़ना लगा..
'कौन कहता है पैसा काला होता है, उसका रंग तो बस हरा ही होता है ', ..और हरियाली उसके घर पर बनी रही..
उसने उस अँधेरी कोठडी के आस पास के मकान खरीद कर अपनी अट्टालिका खड़ी कर दी अब आसपास के लोगों की धूप भी उसी के आँगन में बरसती  बस्ती के लोगों से वह बहुत ऊपर उठ चूका था यहाँ तक की कल्लन- लल्लन उसके जुड़वा लंगोटिया यार भी उस से कतराने लगे ..
एक बेटी डिप्रेशन के चलते पंखे से झूल गयी, तो बेटा सिंगापुर की जेल में सड रहा था पत्नी अब प्रस्तर प्रतिमा बन चुकी थी..
और वह ?
आज मन कर रहा था कि तोड़ डाले यह अट्टालिका ! आवाज़ दे लल्लन कल्लन को ! फिर गले लगा ले, अपने यारों को ! फिर कच्ची प्याज़ के साथ कच्ची शराब उडाये ! नमक रोटी खा कर लम्बी तान ले !
पर नागफनी खूबसूरत कैक्टस थी.. उसके काँटों में सम्मोहन अधिक था....


Poonam Dogra
 
 

कंजूस-मक्खीचूस"

"डैड, इतने रुपये होते हुए भी मुझे एक बड़ी कार नहीं दिला सकते, सब ठीक कहते हैं आप बहुत कंजूस हो।"
वो हंस दिया, ठहाकों से सारी हवेली गुंजायमान हो उठी। कुछ देर हंसने के बाद उसने अपने 15 साल के बेटे से कहा, "इस हँसी को मत भूलना, कल जब तुम्हारे बच्चे बड़े होंगे और समय से पहले कुछ मांग करेंगे, तो इसकी आवश्यकता तुम्हें भी होगी।
और शायद उन्हें भी इस हँसी में छुपा हुआ उलाहने का आँसू नहीं दिखाई देगा।"
- चंद्रेश कुमार छतलानी

वास्तविक अर्थ

"माँ , ओ माँ ! देख तो तेरे लिए क्या लाया हूँ...? "
माँ को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ! ये उसके बेटे की आवाज़ थी ! वो उसे ही पुकार रहा था. हाँ , उसका बेटा उसके लिए कुछ लाया है...आज कई महीनों बाद...वो तो समझी थी कि बेटे ने उसे भुला दिया...घर के एक कोने में फर्नीचर की तरह पड़े रहना उनकी नियति बन गया था...पति की मृत्यु ने एकदम अकेला कर दिया था..एक समय था जब इसी घर में उनका राज चलता था...मगर जबसे बहू आई थी तबसे...
"माँ कबसे आवाज़ दे रहा हूँ ! कहाँ खोयी हो ? लो, ज़रा खोलके तो देखो ..
पैकेट में साड़ी थी...माँ की आँखें भर आयीं..
"कितना गलत समझामैंने अपने बेटे को..! वो मुझे भूला नहीं है..आज भी माँ के लिए उसके दिल में प्यार है ! "
माँ के ह्रदय से अधिक सुगम कोई स्थान नहीं...एक ही पल में वो सब कुछ भूल गयी...अकेलापन , बहू के ताने , दुःख तकलीफ...इतने महीनों में बहाए अनगिनत अश्रु.. सब कुछ ...
"माँ , तुमसे एक काम था."
माँ अपना हाथ साड़ी पर हाथ फिरा रही थी...
" बोल न बेटा .."
"माँ ...ये कुछ पेपर हैं...इन पर तुम्हारे साइन चाहिए."
"कैसे पेपर बेटा ?"
" माँ वो पिताजी ने एक प्लॉट लिया था. तीन साल पहले. उसके बारे में आज ही पता चला है. वो तुम्हारे नाम है.कहीं कोई और कब्ज़ा न कर ले. तुम ये पेपर साइन कर दो तो प्लॉट मेरे नाम........ "
माँ को आगे कुछ सुनाई नहीं दिया..वो साड़ी उन्हें चुभने लगी थी..बेटे के मन में अचानक उमड़े इस प्यार का वास्तविक अर्थ उन्हें समझ आ चुका था...
-किरण

जिन्न

खुले बाल,लाल-लाल रक्तिम आँखें जिस पर सुरमे की रेख कोई 35 बरस की उस महिला को लिए एक 60 साला बुढिया जगेसर काका के पास ले आई थी जिनकी सोखा के रूप में ख्याति थी।पूरा गांव देखने उमड़ पड़ा तो मैं भी कौतुहल वश बेटे के साथ चला गया।
"बोल कऊन है ते,काहे बिटिया को परेशान करे बदे लपटि गए...बोल नहीं ते भसम कई देब" जगेसर काका मिर्च का धुआँ सुँघाते बुदबुदाए जा रहे थे,वह झूम रही थी और अजीब आवाज में अस्पष्ट सा कुछ बोल रही थी।
तभी उस औरत ने जगेसर काका को उठा को पटक दिया...लोग भयभीत हो भागने लगे...वहीं मैं और बेटा खड़े रहे...तभी बेटा उपहास उड़ाकर हँसते हुए कहा
"पापाजी चलिए न ये सब नौटंकी है"
"हम्म तू शराब पीता है,इधर उधर बाइक दौड़ता है न..." (जब कि वो किसी व्यसन में नहीं)कहकर वो महिला बेटे की तरफ खूंखार रूप धर दौड़ पड़ी बेटा आगे वो पीछे...मैं तमाशबीन देखता रहा कुछ समझ न आया...
तभी देखता क्या हूँ... "अरे बचावा हो बचावा ...हे जगेसर काका बचाई लै हमका.... ई हमैं लील जाई बचावा...."
आगे-आगे वो औरत पीछे अपना शेरू(मेरा कुत्ता) हर्डल रेस का नजारा पेश कर रहे थे....लड़का जंजीर थामे हँसा जा रहा था....जिन्न भाग गया था।


डीडीएम त्रिपाठी 


पोल खुली

विवाह के पश्चात् दीपक के सभी संगी साथी जिनके साथ बैठके हो जाती थी धीरे धीरे छूटते गए और मन परिवार में ही रम गया .पत्नी आरती और बिटिया अंजलि ही उसकी दुनिया थे .जीवन संगिनी ही मित्र बन चुकी थी ,सुंदर ,सुशील,गृह कार्य में दक्ष आरती के साथ एक वर्ष ''फूल भी हो दर्मिया तो फासले हुए ''और फिर एक वर्ष बाद अंजलि के आने से जीवन की बगिया महक उठी थी .''होगा कोई बीच तो हम तुम और बंधेगे''वाली बात हो गयी थी और ये बात वो कह गया जिसने कभी वैवाहिक सुख देखा ही नहीं ,आश्चर्य है
सौदर्य प्रसाधनो के मामले में बढती बच्ची ही माँ की प्रतियोगी होती है .महिलाये जीवन के सभी रंग लिपस्टिक की शेड्स में ही तलाशती हैं इसके लिए पती भी घंटो खड़ा रह कर धैर्य की परीक्षा देता है . अंजलि कही से भी मम्मी की वो लिपस्टिक खोज निकलती थी और अपने होठो पर आजमाती थी मम्मी के ये देखते ही चूहे बिल्ली की दोड़ शुरू हो जाती थी .इससे पहले की बिल्ली चूहे पर झपटे वो सरपट दोड़ के पापा की गोद में चढ़ जाती थी और सुरक्षित हो जाती थी .
सुंदर ,सुशील ,गृहकार्य में दक्ष आदर्श भारतीय नारी भी लिपस्टिक के मामले में रण चंडी बन जाती है .दीपक यदा कदा घर में ही एक दो पेग लगा लेता था ,अंजलि का प्रश्न था पापा ये क्या पी रहे हैं ?मम्मी ने सिखा रखा था की ये पापा की दवाई है ,डॉक्टर ने बताई है .
एक बार दीदी के ससुरजी के यहाँ मिलने गए ,वो ७५ की उम्र में भी पूर्णतः स्वस्थ थे और दो पेग रोज़ शाम को लगते थे ,जैसे ही उन्होंने पेग बनाया अंजलि ने बा आवाज़े बुलंद एलान कर दिया ''ये वाली दवाई तो हमारे पापा भी पीते हैं ''दीपक की पोल खुल चुकी थी और वो शर्म से ज़मीन में गड़ा जा रहा था .



कपिल शास्त्री

Tuesday, May 5, 2015

मोहब्बत का नशा

मोहब्बत का नशा भी अज़ब सा है.. बिना कुछ पिए चढ़ जाता है.. हर पल में जीने का एहसास सा होता है.. छोटी-2 खुशिया भी बड़ी सी लगने लगती है.. उस'से बात हो ना हो, एक मेसेज आने से शाम बन जाती है.. कोयल की आवाज़ भी बाहर वाले पेड़ से सुनाई देने लगी है.. हवाओं में भी अलग सी सरसराहट महसूस होती है.. कानो में हलके से उसकी आवाज़ सुनाई पड़ जाती है.. उसकी मुस्कराहट से अच्छा कोई संगीत लगता ही नहीं है... राह चलते अक्सर उसकी झलक दिख जाती है.. दिल जानता है वो नहीं है अभी यहाँ, फिर भी भीड़ में उसी के चेहरे को जाने क्यों ये दिल तलाश करता है.. जब से बताया है उसे अपने दिल का हाल, तब से सारे हाल बेहाल से लगते है.. अपनी तरफ से पूरी कोशिश हो चुकी है, अब उसके इनकार या इकरार की देर है.. साला ये इंतज़ार भी बड़ी कुत्ती चीज़ है.. मज़े के साथ-2 बेकरारी भी बढ़ा देती है.. खैर हां या ना की फ़िक्र ना करके बस इस पल का मज़ा लिए जा रहे है.. प्यार है भी और नहीं भी, ये भी बड़ा सा कन्फ्यूजन है.. दोस्ती में प्यार या प्यार में दोस्ती, इसी में लगे है.. सबसे अच्छा दोस्त ही अगर हमसफ़र बन जाए तो फिर मंजिल तक पहुचने में बड़ा मज़ा आये.. मतलब फीलिंग ही ऐसी है की कलम उठाकर कुछ भी लिख दो.. वैसे एक बात तो रह ही गई.. आज पूर्णिमा का चाँद भी कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा है ।।।।