Wednesday, April 29, 2015

दास्तां

कभी मेरे दर पे तू भूलकर आती भी नहीं..
अपनी कोई दर्द भरी दास्तां सुनाती भी नहीं....
तेरे साये को भी मालूम नहीं मेरा नाम-पता...
जुबां तो है मगर तू मुझसे पूछती भी नहीं...
तू बता दे मुझे सच क्या है और झूठ क्या...
मैं क्या जानूंगा जब तू कहीं बोलती भी नहीं...
मैं सोचूं भी तो तू मुझको कहां मिलती है..
मुझे खोने के खयाल से तू डरती भी नही..!!!

बड़े-बूढ़ों की दुवा सी लगती है

बहुत प्यारी वो मुझे बड़े-बूढ़ों की दुवा सी लगती है
जब मुझे छूती है, तो सुबह की हवा सी लगती है
उसकी पाक रूह में है रौनक हजारों चाँद-तारों की
वह पुकारती है मुझे तो रब की सदा सी लगती है
जी करता है नज़रें नहीं हटे उसके मासूम चेहरे से
जब वह हंसती है तो हर दर्द की दवा सी लगती है
बाहों में बांधकर देती है जब वो मखमली सहारा तो
धरा को तृप्त करने वाली काली घटा सी लगती है
पास आकर आँखों से पूछती है जब कैसे हो ‘मधु’

Saturday, April 25, 2015

समंदर उतर गए

साहिल पर रुक गए थे ज़रा देर के लिए ,
आँखों से दिल में कितने समंदर उतर गए ,
जिन पर लिखी हुई थी मोहोब्बत की दास्ताँ ,
वो चाक चाक पुर्जे हवा में बिखर गए ,
पाया जो मुस्कुराते हुए कह उठी बहार ,
जो ज़ख्म पिछले साल लगाए गए थे भर गए ......

अल्हड़ सी लड़की

सांवली
मुस्कुराती
अल्हड़ सी लड़की
चुप-चाप
तोड़ने लगी
कुछ दीवारें खड़ी
आस-पास,
रिश्तों की गरिमा
या गुलामी का जेलखाना ,

सांवली सी लड़की
उन्मुक्त,
ऊंचा ,
बहुत ऊंचा,
उड़ने की चाह लिए
मुस्कुराती
बेड़ियां
मर्यादा की ,
संस्कृति की
एवं एकतरफा त्याग की
तोड़,
लाल सूरज से
मिलने चल निकली,
सांवली सी लड़की
सूरज की लाली में
दरांती सी दमकती ही
कुल्हाड़ियों सा चलती है
हथौड़ों सा खनकती है
सांवली सी लड़की
जब "लॉन्ग मार्च" पर निकलती है
नई दुनिया में विचरती है ..........!!!!

Friday, April 24, 2015

मेरी बनकर रहना था

मेरी बनकर जो रहना था,तो दिल पर दस्तक कर देते|
हम नींद से तौबा कर लेते,ख्वाबों को रुखसत कर देते||
बाँहों में तुम्हें हम भर लेते,तुम काली घटा बिखरा देते,
मैं इनकी पनाहों में रहता, तुम इतनी रहमत कर देते||
धड़कन, काबू में कर के मैं, साँसों को,बस में कर लेता,
नज़रों के तीर चला के तुम,दिल में जो दहशत भर देते||
नाराज़ कभी जब मैं होता, तुम झूँठी सी अँगड़ाई लेतीं,
लब चुपके से लब पे रख के,तुम मेरी खिदमत कर देते||
उल्फत करना आसान नहीं,"वीरान"तुझे मालूम तो था,
मगरूर नहीं दस्तूर समझ,थोड़ी सी ये ज़हमत कर देते||

Wednesday, April 22, 2015

ये मासूम प्यार

जब तक अहसासों की
नाजुकता गुदगुदाती रहेगी,
ये मासूम प्यार
दिल में बना रहेगा,
तेरी आँखे जो
बोल जाती,
तेरी साँसे जो
गुनगुना जाती,
मेरी हसरते
नया रूप पाती,
खुली आँखों के ख्वाबो
पर पट कौन डालेगा,
जो नभ छूने को बेताब हैं,
अरमानो के पंख लगे हैं,
छू लेंगे आसमाँ
तेरा जब साथ हैं।

बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीनों से,
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है
उसे किसी की मोहब्बत का एतबार नहीं,
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से,
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कराया है
कहाँ से आयी ये ख़शुबू, ये घर की ख़ुशबू है,
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है
तमाम उम्र मिरा दम उसी धुएँ में घुटा
वो इक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया है

सैलाब बढ़ा जाता है

कोई जाता है यहाँ से, न कोई आता है
ये दिया अपने अँधेरे में घुटा जाता है
सब समझते हैं वही रात की क़िस्मत होगा
जो सितारा कि बुलन्दी पे नज़र आता है
बिल्डिंगें लोग नहीं हैं, जो कहीं भाग सकें
रोज़ इन्सानों का सैलाब बढ़ा जाता है
मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ
किसका आँचल है जो कोहसारों पे लहराता है
मेरी आँखों में है इक अब्र का टुकड़ा शायद
कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है
दे तसल्ली जो कोई आँख छलक उठती है
कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है
अब्र के खेत में बिजली की चमकती हुई राह
जाने वालों के लिये रास्ता बन जाता है

रिश्ते एहसास से ख़ाली होते हैं

शाम का मंज़र जब बोझिल सा होता है
दिल मेरा क्यूँ दर्द में डूबा होता है
जो रिश्ते एहसास से ख़ाली होते हैं
उन रिश्तों को भी तो ढोना होता है
दूर तीरगी करता है जो बस्ती की
उस दीपक के तले अँधेरा होता है
दुनिया दारी की इन झूठी रस्मो से
अक्सर इंसानो को धोखा होता है
मर्ज़ी के आज़ाद जवाँ बच्चो सुन लो
बूढी आँखों में भी सपना होता है
नज़रे बद से ख़ुदा बचाये बच्चों को
रोज़ यहाँ पर एक हादसा होता है
याद किया जाता हैं उनको सदियों तक
जिनका नाम अदब में लिक्खा होता है

Tuesday, April 21, 2015

फूल बोयेगा तो खुशबू मिलेगी

अभी तो आँख खुली है अभी क्या देखा है -
सुन आगे आगे देख तो क्या होता है --
फूल बोयेगा तो खुशबू मिलेगी फूलों की --
खार बोता है और फूलों के लिए रोता है --
कौन किसके नसीब से यहाँ लड़ पाया है--
एक तेरे चीखने चिल्लाने से क्या होता है --
रोते हुए आया था नंगा जाएगा भी नंगा --
बता क्या है यहाँ तेरा जिसे तू खोता है --
औलाद भी दो चार दिन रोयेगी भूल जायेगी --
उम्र भर कौन यहाँ किसके लिए रोता है --
खुशियां मिलीं या गम मत सोच सफर में--
हर आदमी अपने ही कर्मों का बोझ ढोता है --

औरतें

सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़मोश गहरी औरतें

सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें

शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें

सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें

इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का आतिश-फिशान
किं पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें

चाँद इन बदलियों में रहते हैं

ज़ख़्म यूँ मुस्कुरा के खिलते हैं
जैसे वो दिल को छू के गुज़रे हैं
दर्द का चाँद, आँसुओं के नुजूम
दिल के आँगन में आज उतरे हैं
राख के ढेर जैसे सर्द मकाँ
चाँद इन बदलियों में रहते हैं
आईनों का कोई कुसूर नहीं
इन में अपने ही अक़्स होते हैं
ग़ौर से देख ख़ाक तन्हा नहीं
साथ फूलों के रंग उड़ते हैं
कोई बीमार के क़रीब रहो
शाम ही से चराग़ सोये हैं
अलअमा शाइराने ख़स्ता हाल
कितने आशिक़ मिज़ाज होते हैं
अब शबे-हिज़्र भी नहीं आती
इन दिनों हम बहुत अकेले हैं
इन से अहवाले शब सुनो साहब
’बद्र’ जी रात रात घूमे हैं

Monday, April 20, 2015

मलाल किसलिए

अब बिछुडनें का करें,मलाल किसलिए|
ख्वाब देखें क्यों, करे ख्याल किसलिए||
मंज़िलें जब हो गयी, अपनी ज़ुदा-ज़ुदा,
कैसे रहोगे तन्हा ?ये सवाल किसलिए||
लौटना वापस नहीं मुझको है जब यहां,
देखना इस हुस्न का,जमाल किसलिए||
कब्र में मिलती है, सिर्फ एक को पनाह,
जिद है जाने की कहाँ,बवाल किसलिए||
छोड़कर"वीरान"को लगते हो खुश नहीं,
जश्न किस के वास्ते,धमाल किसलिए||

शहर जल जायेगा

गाँव मिट जायेगा शहर जल जायेगा
ज़िन्दगी तेरा चेहरा बदल जायेगा
कुछ लिखो मर्सिया मसनवी या ग़ज़ल
कोई काग़ज़ हो पानी में गल जायेगा
अब उसी दिन लिखूँगा दुखों की ग़ज़ल
जब मेरा हाथ लोहे में ढल जायेगा
मैं अगर मुस्कुरा कर उन्हें देख लूँ
क़ातिलों का इरादा बदल जायेगा
आज सूरज का रुख़ हमारी तरफ़
ये बदन मोम का है पिघल जायेगा

ग़म छुपाते रहे

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे
महफ़िलों महफ़िलों गुनगुनाते रहे
आँसुओं से लिखी दिल की तहरीर को
फूल की पत्तियों से सजाते रहे
ग़ज़लें कुम्हला गईं नज़्में मुर्झा गईं
गीत सँवला गये साज़ चुप हो गये
फिर भी अहल-ए-चमन कितने ख़ुशज़ौक़ थे
नग़्मा-ए-फ़स्ल-ए-गुल गुनगुनाते रहे
तेरी साँसों की ख़ुश्बू लबों की महक
जाने कैसे हवायें उड़ा लाईं थी
वक़्त का हर क़दम भी बहकता रहा
ज़क़्त ले पाँव भी डगमगाते रहे

उसने मुझे चाहा बहुत है..

मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है..

खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है

मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ
मगर इस राह में खतरा बहुत है

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है

इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुँआ है और ये गहरा बहुत है

उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है
समंदर है मगर प्यासा बहुत है

मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है

मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है
यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है

बर्बाद ज़िन्दगी कर ली

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
तुम मुहब्बत को खेल कहते हो
हमने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली
उसने देखा बड़ी इनायत से
आँखों आँखों में बात भी कर ली
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी- कभी कर ली
हम नहीं जानते चिराग़ों ने
क्यों अंधेरों से दोस्ती कर ली
धड़कनें दफ़्न हो गई होंगी
दिल में दीवार क्यों खड़ी कर ली

Saturday, April 18, 2015

थोड़ी नमी रह गई

कसक दिल की दिल में चुभी रह गई ,
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई ।
एक मैं , एक तुम , एक दीवार थी,
ज़िन्दगी आधी-आधी बटी रह गई ।
मैंने रोका नहीं , वो चला भी गया ,
बेबसी दूर तक देखती रह गई ।
रात के भीगी -भीगी छतो की तरह ,
मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गई ।

Friday, April 17, 2015

बस्तियाँ दिल की

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे
हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे
घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे
वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे
पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

जिंदादिली

दिल के टूटने पर भी हंसना----
-----शायद ' जिंदादिली ' इसी को कहते
हैं..!
.
ठोकर लगने पर भी मंजिल तक भटकना
-------शायद ' तलाश ' इसी को कहते हैं..!
.
किसो को चाहकर भी न पाना
-----शायद ' चाहत' इसी को कहते हैं..!
.
टूटे खंडहर में बिना तेल के दिया जलाना
----शायद ' उम्मीद ' इसी को कहते
हैं..!
.
गिर जाने पर फिर से खड़ा होना
----शायद ' हिम्मत ' इसी को कहते हैं..!
और
ये हिम्मत , उम्मीद , चाहत , तलाश...!
---शायद ' जिंदगी ' इसी को कहते
हैं...!!

बात अधूरी है

" चाँद फिर.. आज भी .. निकल आया ..
आज हम फिर से.. साथ-साथ चले ;
.
' वो ' फ़िर.. डाल-डाल.. चलने लगा ..
करते क्या .. हम भी .. पात-पात चले ;
.
दिन में रौशन हुआ .. मैख़ाना कब ..
पिला ऐ साक़ी .. जब तलक़ रात चले ;
.
दिन में फ़ुरसत .. ना तुझे.. ना मुझे ..
रोक दे रात को .. न अब.. ये रात ढले ;
.
जवाँ ये दिल है .. जवाँ तेरी महफ़िल ..
आँखों - आँखों में ... खुराफ़ात चले ;
.
बात दिन में .. उससे नहीं होती ..
ढले ये दिन .. तो कोई बात चले ;
.
बात अधूरी है .. कैसे पूरी हो ...
मिले जो तू .. तो आगे बात चले... "

Thursday, April 16, 2015

रोज़ लड़खड़ाते हो

आदतन रोज़ लड़खड़ाते हो
और गिरते हो चोट खाते हो
क़द्र रिश्तों की कुछ नहीं तुमको
तुम हमेशा ही दिल दुखाते हो
मैंने तो सिर्फ प्यार बाँटा था
तुम ये नफरत कहाँ से लाते हो ?
ख़ाक़ जिसने वफ़ा पे डाली है
सामने उसके गिड़गिड़ाते हो ?
उम्र बीती है ठोकरें' खा कर
और फिर भी फ़रेब खाते हो
तुमसे उम्मीद क्या करे कोई
कितने एहसान तुम जताते हो

जिये जायेंगे

हैं लाख गम तो मगर जीते हैं जिये जायेंगे
हम अपनी यादों से तुमको भी रुलायेंगे
करें क्यों हम ये सबर कि आप नहीं आयेंगे
गुज़र के आपके घर से, हम तो यूँ हीं जायेंगे
बहोत हुवा इस ज़माने से क्यों घबराएंगे
किया इश्क जो हमने, तो खुद निभाएंगे
चले भी आओ कि अब हम नहीं बुलाएँगे
मगर तुम्हारे बिना भी, न लौट पाएंगे
दिल आज खुद है परेंसां कब तलक सतायेंगे
कभी तो प्यार से हमको भी वो मनाएंगे....!!

Wednesday, April 15, 2015

मेरा मन

वह अन्धेरा कोना
याद आते ही सिहर
उठता है आज भी
मेरा मन ...
परछाई तक साथ
छोड़ जाती थी जहाँ
सन्नाटे की आवाज़
ज़ोर से आती वहां
याद आते ही सिहर
उठता है आज भी
मेरा मन ....
तन अकेला पर
भीड़ मन में बढ़ जाती
बस रात्रिचर प्राणी
की वाणी कानों में आती
याद आते ही सिहर
उठता है आज भी
मेरा मन ....
चिरपरिचित दिन में
जो अपना था लगता
रात ढक लेती थी
उस अपनेपन को
याद आते ही सिहर
उठता है आज भी
मेरा मन .....
हवा से वृक्ष की डाली
जो झुकती ऐसा लगता
कि पीछे है मेरे कोई
जो बुला रहा है
याद आते ही सिहर
उठता है आज भी
मेरा मन ....
व्यथा मेरे मन की
कोई समझ न पाता
बचपन का वह डर
किसी को नहीं सुहाता
मेरे आँगन में ही था
वह अन्धेरा कोना
याद आते ही सिहर
उठता है आज भी
मेरा मन ....

जख्म तो जैसे विरासत में मिलें है

मोहब्बत के इस खेल में आजमाइश क्यूँ है?
जब बेपनाह इश्क है तब रंजीश क्यूँ है?
लफ्ज ही लफ्जो के मायने ना समझे
अरमानों की दिल मे बंदिश क्यूँ है?
दिल जलाने के यहाँ मनसूबे बनते है
अपनों के लिए हि ये साजिश क्यूँ है?
तवज्जो भी दे और तवक्को ना रखे
इस इश्क मे ऐसी गुजारिश क्यूँ है?
जख्म तो जैसे विरासत में मिलें है
यहाँ अनगीनत अश्कों कि बारिश क्यूँ है?

खुद अपना ही ज़िंदा मज़ार हूँ मैं

तेरी बेरूख़ी का शुक्रगुज़ार हूँ मैं
खुद अपना ही ज़िंदा मज़ार हूँ मैं
नापतोल जो करना है कर लो तुम
गुमनामी का बेनामी बज़ार हूँ मैं
महसूस कर सको गर मुझमें कभी
इक शख़्स में अक्स हज़ार हूँ मैं
दर्द की आमद हो चाहे जितनी
दौरे ख़िज़ा में भी गुलज़ार हूँ मैं
छू सको गर मुझको तुम
 जज़्बातों का फ़क़त इज़ार हूँ मैं

अजीब आग है

ग़मों की आयतें शब भर छतों पे चलती हैं
इमाम बाड़ों से सैदानियाँ निकलती हैं
उदासियों को सदा दिल के ताक में रखना
ये मोमबत्तियाँ हैं, फ़ुर्सतों में जलती हैं

रसोई घर में ये अहसास रोज होता है
तिरी दुआओं के पंखे हवायें झलती हैं
अजीब आग है हमदर्दियों के मौसम की
ग़रीब बस्तियाँ बरसात ही में जलती हैं
ये उलझनें भी ज़रूरी हैं ज़िन्दगी के लिये
समन्दर में यूँ ही मछलियाँ मचलती हैं

ज़माने लगते हैं...

" घर बसाने में .. ज़माने लगते हैं...
महफ़िल सजाने में .. ज़माने लगते है...
नींव के पत्थर .. ग़र.. बेवफा हो जाएं...
इमारत जमाने में .. ज़माने लगते हैं....
.
बिगाड़ने में .. वक़्त कितना.. लगता है...
सँवारने में तो .. जमाने.. लगते हैं....
.
दूर से तो .. सलाम है.. आसाँ ...
नज़दीक आने में .. जमाने लगते हैं...
.
पास आने पे .. खुलती हक़ीक़त हैं...
दूर के ढोल.. सब .. सुहाने लगते हैं...
.
हमने भेजा था .. पयामे-मुहब्बत.. उनको...
वो मुहब्बत को .. आज़माने.. लगते हैं....
.
कारवां सारा .. आमादा-ए- मुहब्बत है...
देखो कितने .. ठिकाने.. लगते हैं.... !
.
दरवाज़ा तोड़ .. चला आता है.. इश्क़....
खटखटाने वालों को .. ज़माने लगते हैं.... "

Meri Jaan!


Jaanta Hoon Main
Kay Teri Zindagi Say Ab
Nikaala Ja Chuka Hoon Main
Tum Mujhse Pyaar Karti Thi
Magar Phir Ranjishein Aisi Hui
Kay Hum ne raasty badly
Ab Ulfat Kay Sabhi Jazbay
Adawat Orhni Orhay,
Hijjar Kay Talkh Saaazon Par
Mohabbat Kay Mazaaron Per
Kai Barson Say Raqsaan Hain
Mujhe Tu Ne Bhula Daala
Naya Woh Humsafar Dhoonda
Jo Mujhko Zehar Lagta Hai
Tu Apni Zindagi Mein is Qadar Masroof Hai Shayed
Kay Meri Yaad Ka Jhonka
Tujhe Choona Bhi Jo Chahay
Tu Wapis Morr Deta Hai
Kabhi Socha Hai Kya Tu Ne,
Kay Tere Baad Meri Zindagi Kaisy Basar Hogi?
Mera Kaisay Guzar Hoga?
Main Kaisay Bhool Paaon Ga
Wo Saari Meer Ki Nazmein
Jo Tum Meri Muhabbat Mein
Mujhe Arsaal Karti Thi
Wo Ghaalib Kay Sabhi Ash'Aar
Ragon Mein Dornay Phirnay Kay Qael To Nahi Lekin
Mere Jazbaat Mein Shaamil,
Mere Dil Mein Dharakty Hain

Chalo Jo Bhi Hua Jaana!
Meri Darkhwast To Sun Lo
Meri itni guzarish hai k
Gharoob-e-Shams-e-Jeevan say Zara pehle
Mujhe Tum Milne aa jana,
Tumhein dekhay bina Jeena
Boht dushwar Hai Jaana
Tumhein ab dekh Kay marna
Boht hi pursakoon hoga

Tuesday, April 14, 2015

मोहब्बत जिंदगानी है

रुस्वाइयां ही मिलती हैं मोहब्बत में दिले ए नादा
और हम समझते रहे की मोहब्बत जिंदगानी है ...
ऐसे हमदम इस ज़माने में नहीं मिला करते
दिल की बाज़ी लगाना तो आजकल नादानी है ....
जिसको दिल देके पशेमान रहे आजतक हरदम
उसने कहा मेरा प्यार उसपे मेरी मेहेरबानी है ....
पेशानी चूम के उसने मेरी एक दिन कहा
हर एक परेशानी मेरी आज से उसकी परेशानी है...
हैरान हूँ अबतक मैं अपनी किस्मत पे
कि मेरी ज़िन्दगी में भी बक्शी ख़ुदा ने एक कहानी है .....

नज़रे चुरानें लगा

कैसा जादू है ये, एक मुलाक़ात का, आईना मुझसे, नज़रे चुरानें लगा|
मेरा हमराज़ है, हमशकल हैं मेरा, मुझसे मेरा ही, चेहरा छुपाने लगा||
धड़कनें मेरी ,सौतन सी हैं बन गई , बेवफाई मेरा दिल, दिखाने लगा,
खुद पे काबू नहीं,आईना क्या करे,ये बदन साज़ सा,झनझनाने लगा||
चुगली करने लगी,मुझसे मेरी नज़र,कौन ख़्वाबों में तेरी हैआने लगा,
लब मेरे हैं, मगर मेरे हक़ में नहीं ,इन पे कोई असर है, दिखाने लगा||
उठ के, चल देती हूँ,बे-वज़ह बेसबब,बेखुदी का नशा,मुझपे छाने लगा,
अब तो "वीरान"मैं,अपने बस में नहीं,वक़्त-बे-वक़्त कोई बुलाने लगा||

रिश्तों का चलन

खून से सने रिश्तों का चलन देख रहा हूँ,
भूख से तड़पता हुआ इंसान देख रहा हूँ,
झूठी रियासतों के इस महानायक दौर में,
सबके चमकते चेहरों पे जलन देख रहा हूँ।।

बात वो है जो तुमने ठानी है

मैंने लिखनी है, बस सुनानी है
बात तो उस तरफ से आनी है.
बात जो करिये तो करिये खुलकर
दिल में रखना तो बेईमानी है.
साफ़ कहना है, साफ़ सुनना है,
अपनी आदत ये ख़ानदानी है.
आप करिये बहस या फिर चर्चा
बात तो बहता हुआ पानी है.
आप जो बात कहते हो सबसे
उसमें मेरी ही तो कहानी है.
बात बोलो तो आग जैसी है
और इसको लिखो तो पानी है.
बात वो बात नहीं जो कह दी
बात वो है जो तुमने ठानी है.

रस्मे-मीर

अगर कुछ हट के लिखता हूं तो रस्मे-मीर जाती है|
निबाहूँ तो ये डर इक़बाल की जागीर जाती है||
चलूं ग़ालिब के रस्ते पर तो फिर एहसान-दानिश ने|
जो देखे ख़्वाब उन ख़्वाबों की भी ताबीर जाती है||
अगर मैं हुस्न की शौखी नज़र-अंदाज़ करता हूं|
तो जो है इश्क के पेरों में वो जंजीर जाती है||
जो समझा दर्द साहिर ने उसे मैं छोड़ दूँ तो फिर|
किताबों से ग़रिबो-दर्द की तासीर जाती है||
हुकूमत के लिए लिक्खूं क़लम सोने के मिल जाएं|
मगर मज़लूम के हाथों से तो शमशीर जाती है||
क़लम की आबरू गर ज़ब्र के हाथों में सौंपूं हूं|
तो ज़ाया फैज़ अहमद फैज़ की तहरीर जाती है|
अगर मतलब बताता हूं हरे और गेरवे रंग का|
दिले-मासूम से यक्जिहती की तस्वीर जाती है||....

प्यासे दरियाओं में

पहला सा वो ज़ोर नही है मेरे दुख: की सदाओं में
शायद पानी नही रहा है अब प्यासे दरियाओं में
जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिये है सुहागन नें
वो पर्वत से टकरा कर बरस चुका है सहराओं में
जाने कब तड़प और चमके सुनी रात को फ़िर डँस जाए
मुझ को एक रूपहली नागिन बैठी मिली है घटाओ में
पता तो आखिर पता था, गूंजान घने दरख़्तों ने
ज़मीं को तन्हा छोड़ दिया है इतनी तेज हवाओं में
दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफ़ाओ में
खड़े हुए जो साहिल पर तो दिल में पलकें भीग गई
शायद आँसू छुपे हुए हो सुब्हा की नर्म हवाओं में
ग़ज़ल के मंदिर में दीवाना मुरत रख कर चला गया
कौन उसे पहले पूजेगा बहस चली देवताओं में

किसे ख़बर थी

किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊँगा
हयातो-मौत फ़िराको-विसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊँगा

पला बढ़ा हूँ अभी तक इन्हीं अन्धेरों में
मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊँगा
मिरे मिज़ाज की ये मादराना फ़ितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊँगा
तुम एक पेड़ से बाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर दूर जाऊँगा
मिरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़्क लिखा है वहीं से लाऊँगा

Mujhe mehsoos karne do

Zara thehro...!!!! Mujhe mehsoos karne do... Yeh tanhai..! Judai aan pahunchi hai... Mujhe tum se bicharna hai...!!!! Tumhari muskurahat,guftagu,khamoshiyaan..!!! Sab kuch bhulana hai….! Tumhare saath guzre sandali lamhon ko Is dil main basana hai…!

Maikada Aakhein.

Meri Aakhon Se Milti Hai Jab Jab Teri Maikada
Aakhein.
Madhosh Karti Hai Ye Mulakatein.
Ek Sakoon Utar Aata Hai Seene Main,
Ye Dil Bhool Jata Hai Tere Diye Zakhmon Ki
Baatien…

Aankhon Mei

Zara Si Der Ko Aaye The Khaawb Aankhon Mei
Phir Us Ke Bad Musalsal Azaab Aankhon Mei Wo
Jis Ke Nam Ki Nisbat Se Raushani Tha Wujood
Khattak Rahaa Hai Wohi Aaftaab Aankhon Mei
Jinhen Mata-E-Dil-O-Jan Samajh Rahe The Ham
Wo Aa’iine Bhi Hue Behijaab Aankhon Mei

चाँद का टुकड़ा

चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ
मैं न इस बात पे नाज़ाँ हूँ न शर्मिंदा हूँ
दफ़न हो जाएगा जो सैंकड़ों मन मिट्टी में
ग़ालिबन मैं भी उसी शहर का बाशिन्दा हूँ
ज़िंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन
लोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइन्दा हूँ
फूल सी क़ब्र से अक्सर ये सदा आती है
कोई कहता है बचा लो मैं अभी ज़िन्दा हूँ
तन पे कपड़े हैं क़दामत की अलामत और मैं
सर बरहना यहाँ आ जाने पे शर्मिंदा हूँ
वाक़ई इस तरह मैंने कभी सोचा ही नहीं
कौन है अपना यहाँ किस के लिये ज़िन्दा हूँ

सूखे पत्तों पर

सुरमा मिस्सी कंघी चोटी भूली है
सूखे पत्तों पर जो मैना बैठी है
कुहरे के लरज़ीदा हाथों में अक़्सर
तुलसी और अदरक की चाय छलकती है
वो जो रंग चमकता है उस टहनी पर
हाथ आये तो फूल नहीं तो तितली है
अपने ही मिर्चें पूदीने सूख गए
वर्ना दुनिया माश की दाल तो अब भी है
इस सुनसान सी शाम में ऊँचे टीले पर
ज़ुल्फें खोले वो लड़की क्यों बैठी है
शावर के नीचे घुलती जाती है शाम
मेरी आँखों पर इक टावल लिपटी है
ऐब पुराने घर का ये ही है बाबा
कोई आये न आये घंटी बजती है
तीन समंदर दो सेहरा उसके आगे
नागिन जैसी एक लकीर चमकती है

अजब मौसम है

अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है
मुहब्बत में मुहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है
मैं जब सो जाऊँ, इन आँखों पे अपने होंठ रख देना
यक़ीं आ जायेगा, पलकों तले भी दिल धड़कता है
हर आंसू में कोई तसवीर अकसर झिलमिलाती है
तुम्हें आँखें बतायेंगी, दिलों में कौन जलता है
बहुत से काम रुक जाते हैं, मैं बाहर नहीं जाता
तुम्हारी याद का मौसम कहाँ टाले से टलता है
मुहब्बत ग़म की बारिश हैं, ज़मीं सर-सब्ज होती है
बहुत से फूल खिलते हैं, जहां बादल बरसता है

Monday, April 13, 2015

वो गुजरा जमाना

सीने में दफन है वो गुजरा जमाना
खामोशी बन गयी जीने का बहाना
दर्द के बदन पे तबस्सुम की पैरहन
निगाहों की उदासी कहती है फसाना
अपने हैं मेरे दूर, मैं खुद से बहुत दूर
तन्हाई ने मुझे बना दिया है दीवाना
उस हुस्न को देखा हमें इश्क हो गया
बरसों तलक मिला रोने का बहाना

किस्मत

मैं उस किस्मत का सबसे पसंदीदा खिलौना हूँ..;
वो रोज़ जोड़ती है मुझे..''फिर से तोड़ने के लिए

नासूर

अपने दिल के घाव को दिखाऊँ कैसे,बन गया है वो नासूर ये बताऊँ कैसे,
छलक आया है जो दर्द आँखों से मेरे,अब मैं उसे दुनिया से छिपाऊँ कैसे...

Friday, April 10, 2015

किराये की शोहरतें

मैं तो गुबार था जो हवाओं में बंट गया
तू तो मगर पहाड़ था तू कैसे हट गया
कब तक निभाती साथ किराये की शोहरतें
कागज़ का था लिबास इशारे से फट गया
सेना-पति तो आज भी महफूज है मगर
लश्कर ही बेवकूफ था जो शह पे कट गया

दामन की सिलवटो पे बड़ा नाज़ है हमें
घर से निकल रहे थे कि बच्चा लिपट गया
वो भी नयी हवा के असर से बचा नहीं
कुछ दूर तक तो साथ चला फिर पलट गया .

Hamesha Der Kar Deta Hun Mein.

Zaruri Baat Kahni Ho ;Koyi Wada Nibhana Ho;
Usey Awaz Deni Ho;Usey Wapas Bulana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein
Madad Karni Ho Uski;Yar Ki Dhadhas Barhana Ho;
Bahut Derina Raston Par Kisi Se Milne Jana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein
Badalte Mausamon Ki Sair Main Dil Ko Lagana Ho;
Kisi Ko Yad Rakhna Ho;Kisi Ko Bhool Jana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein
Kisi Ko Maut Se Pahle;Kisi Gham Se Bachna Ho ;
Haqiqat Aur Thi Kuch ;Us Ko Ja K Ye Batana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein.

मुझे तुमसे प्यार है

मुझे तुमसे प्यार है मगर तुमपे यकीन नहीं
है,
इस वजह से मेरा तेरे साथ चलना मुमकिन नहीं
है...
मैंने जब वफा करनी चाही तब तुमने मुझे
ठुकराया,
अब वो चोटें भुलाकर तुझे अपनाना
मुमकिन नहीं है...
जाने क्या हुआ जो आज तुम लौटकर पास
आए हो,
आज मुझे क्या हुआ, यह भी बताना मुमकिन
नहीं है..
जिन जख्मों को भरने में अभी कई मौसम
लगेंगे,
उनको फिर से कोई ठेस लगाना मुमकिन
नहीं है..
तुमसे फिर दिल लगाना अब मुमकिन नहीं है ।।

एक लड़की थी

एक लड़की थी जिसके सपने मेरे घर तक आते थे
एक लड़की थी जिसके अपने भी लड़कर थक जाते थे
एक लड़की थी जिसके आंसू भी रोये काली रातों में
एक लड़की थी अभागिन लकीरें थी जिसके हाथों में
वो लड़की पगली निर्मोही न जाने कैसे मान गयी
खुद को कुनबे पर दाव लगा क्या करने को ठान गयी
किसी अनजाने का हाथ पकड़कर वो फिर चली गयी
अपनों के ही मोह में आकर अपनों से ही छली गयी
मैं भी था जिसके ख्वाबों का ना उसने ख्याल किया
मैं भी था जिसने उससे फिर न कोई सवाल किया
मैं भी था उन डायन रातों में खुद को तनहा पाता था
मैं भी था लुभावन बातों से खुद को ही समझाता था
जाने क्यों हम दोनों से ये घोर प्रेम-अपराध हुआ
मिट गयी यादें धीरे धीरे फिर न कोई संवाद हुआ
जीवन की भाग दौड़ में यूँ ही इक दशक बीत गया
नियति से लगी होड़ में यूँ ही जीवन-संगीत गया
समंदर की सब लहरों में उसका अक्स खोजता रहा
वो बात नहीं इन चेहरों में यह शख्स सोचता रहा
सुना है वह लड़की अब रोते रोते हंसती है
उसके महल तले प्रेम-स्मृतियों की बस्ती है
अपनी बेटी को गले लगा वो मेरी बातें करती है
अपनों और सपनो की हर इक आहट से डरती है
मन की व्यथा-कथा तेरे देवता कहाँ सुनते हैं
खैर जाने दो आओ ना अब नए ख्वाब बुनते हैं

जाने क्या थी

मेरे सीने पर वह सर रक्खे हुए सोता रहा
जाने क्या थी बात मैं जागा किया रोता रहा
वादियों में गाह उतरा और कभी पर्वत चढ़ा
बोझ सा इक दिल पे रक्खा था जिसे ढोता रहा
गाह पानी गाह शबनम और कभी ख़ूनाब से
एक ही था दाग़ सीने में जिसे धोता रहा
इक हवा ए बेताकां से आख़िरश मुरझा गया
जिंदगी भर जो मोहब्बत करके शजर बोता रहा
रोने वाले ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा
रात की पलकों पे तारों की तरह जागा किया
सुबह की आँखों में शबनम की तरह रोता रहा
रोशनी को रंग करके ले गए जिस रात लोग
कोई साया मेरे कमरे में छिपा रोता रहा

बढ़ते हुए गम आते हैं

कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं
दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं
मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं
खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं

जिंदगी जीने की ख्वाहिश

जिंदगी साफ़ बयां करती है मिट जाने को,
मैंने फिर घूर के देखा है क्या पैमाने को.
कितना बैचैन-ओ-बेबस है ये दिले-नादां,
ज़िद न करता है कहीं और अब ये जाने को,
सांस लेकर तो लगा था कि हैं ज़िंदा हम भी,
फिर क्या समझेगा कोई और इस दीवाने को.
सिर्फ पाने की तमन्ना में उसे यूं भटका,
मैंने छोड़ा नहीं मसजिद को न बुतखाने को.
जिंदगी जीने की ख्वाहिश ही फकत थी बाकी,
बरना बाकी न बचा कुछ मेरे कर पाने को.
सांस तो मेरी तरह और भी लेते थे मगर,
न था पीने को और ना ही था कुछ खाने को.
मरता अपनी ख़ुशी से है यही कहते अक्सर,
कोई कहता न कभी जलने की परवाने को.
अब कहेंगे भी क्या शान-ओ-हालत अपनी,
शायरी शौक़ बनी जब न था कमाने को.
कितने नादीदा रहे ये भी बतायें किसको,
हम ने आँखों से पीया लरजते पैमाने को.
यार जाएँ बला से दहरो-हरम की जानिब,
'अली' गर जाएगा तो जायेगा मयखाने को.




पैमाने = शराब का गिलास, तमन्ना - इच्छा, बुतखाने = मंदिर, ख्वाहिश = आकांक्षा, नादीदा = लालायित/ललचाते, लरजते = छलकता हुआ, दहरो-हरम = मंदिर और मस्जिद, जानिब = ओर/तरफ, मयखाने = मदिरापान का स्थल।

किसी को किसी से प्रेम नहीं

देवता नहीं ,दरिंदे नजर आते हैं
किसी को किसी से प्रेम नहीं
मतलब परस्त नजर आते हैं ,
कोई किसी को सम्मान नहीं देता
स्वयं दूसरों से मान सम्मान चाहते हैं
कोई भी किसी को देना नहीं चाहता
पर कुछ ना कुछ लेना ही चाहते हैं ,
घर में सबके बहु बेटियां हैं मगर
दूसरों की ,नजर भर देखना चाहते हैं
अपनी तो संभाली नहीं जाती हैं पर
दूसरों की इज्जत संभालनी चाहते हैं ,
अपनी तो खीचड़ रही है चौराहों पर
दूसरों पे कीचड उछालनी चाहते हैं
अपना चेहरा तो पूता है गंदगी से
दूसरों के चेहरे को पोतना चाहते हैं ,
अब कैसे कहें हम आपसे क़िहम भी
बाहर निकल कर कुछ देखना चाहते हैं
पर जनता जनार्दन का ये विद्रूप रूप
देखने मात्र से ही हम क्योँ घबराते हैं |

उस मौत को सलाम !!

अपने लिए तो हर कोई मांगता है दुआ
जो औरो के लिए मांगे
उस दुआ को सलाम !!

अपनी औलाद तो हर कोई पालता है
जो अनाथ को पाले
उस जज्बे को सलाम !!
अपने लिए तो हर कोई जीता है
जो औरो के लिए जिए
उस जीवन को सलाम !!
अपने लिए तो हर कोई लड़ता है
जो औरो के लिए लड़े
उस हौसलों को सलाम !!
अपनी मौत तो हर कोई मरता है
जो किसी के खातिर जान दे
उस मौत को सलाम !!

Thursday, April 9, 2015

ये आसमां से ख्याल

ये आसमां से ख्याल तक
एक अधूरी जमीं की प्यास है

ये मिट ना सके तूफ़ान तक
मेरे दिन रात भी उदास है
ये आसमां से ख्याल..................
कोई मजबूर है शहर इतना
के रूह तो मिल जाये आस है
ना टूट सके डोर लहुँ के
मुझे अब दुश्मनो की तलाश है
ये आसमां से ख्याल..................
मैं लड़ रहा हूँ परछाइयां मेरी
पीछे रह जाये जो अब पास है
कौन अपना है कौन रक़ीब यहां
यूँ जो तन्हा अब, क्या खास है
ये आसमां से ख्याल..................
मुझ से रब रूठ गया है शाम से
मेरे ख़्वाब में मिल जाये दरख़ास्त है
मेरे चाँद को भी है फिक्र मेरी
चांदनी लुटाए मुझपे के जब तक सांस है
ये आसमां से ख्याल..................
ये आसमां से ख्याल तक
एक अधूरी जमीं की प्यास है...............

वीरान

ख़्वाबों से, बाहर तो निकलो,तुम आज,हक़ीक़त बन जाओ|
जागी हो , नीँद से जो अपनी मेरी वो , किस्मत बन जाओ||
ख़्वाहिश की, तरह जो सुंदर हो,साँसों में समाया,चन्दन हो,
मन्दिर की एक, मूरत हो जैसी, प्यारी सी,सूरत बन जाओ||
हो सीने में , धड़कता दिल मेरा , पर उसमें धड़कन हो तेरी,
सांसों में, उलझी साँसे हो, तुम जीने की, जरूरत बन जाओ||
आँखों से, छलकती हो मदिरा,लब मय से भरे दो पैमाने हों,
प्यासा ही रहे , बस पीने वाला तुम ऐसा, शरबत बन जाओ||
"वीरान" कभी , करवट लेकर बिस्तर की, सिलवट से पूंछों,
कहती है, सुबह हम मिट जायेंगें,ग़र मेरी,हसरत बन जाओ||

Wednesday, April 8, 2015

सावाल करते हैं

आज कल के रांझे मुझसे सावाल करते हैं
मेरी लिखी बातो पर रोज बवाल करते हैं
मुझसे पुछ्ते हैं नये नये तारीके शायरी मे
कहते हैं राजन आप लिख् कर कमाल करते हैं
हमे भी बना लो तुम अपना शागिर्द गुरू जी
आप रोज कलम से नित नया धमाल करते हैं
शायरी मे वज़न ना हो तो क्या फ़ाइदा
 अपने शब्दो से रोज माळा माळ करते हैं

हर करवट पर नाम तेरा

रात गई पर
तुम कसमसाते मेरी देह में,
आँखों से निंद चुरा ले जाते हो,
चादर की हर सलवट पर नाम तेरा,
सांसो को नापती,
धडकनो को गिनती,
तुम ना जाने
किस करवट पर आ मिलो,
हर आहट पर कर्ण मेरे,
मेरी सांसो को है तेरा इंतजार,
रात गई तुम कहाँ मैं कहाँ,
भोर भई देह अलसाई,
हर करवट पर नाम तेरा।

Tuesday, April 7, 2015

काँच की चूड़ियाँ

ख़त में बारीकियाँ चमकती हैं...
फूल सी उँगलियाँ चमकती हैं...|
चाँद सो कर उठा है कमरे में...
दूर से खिड़कियाँ चमकती हैं...|
घर में इक रोशनी सी होती है...
काँच की चूड़ियाँ चमकती हैं...|
मेरे हाथों की इन लकीरों में...
मेरी महरूमियाँ चमकती है....|

दर्द के कारवाँ

कुछ तो मैं भी बहुत दिल का कमज़ोर हूँ
कुछ मुहब्बत भी है फ़ितरतन बदगुमाँ
तज़करा कोई हो ज़िक्र तेरा रहा
अव्वल-ए-आख़िरश दरमियाँ दरमियाँ
जाने किस देश से दिल में आ जाते हैं
चांदनी रात में दर्द के कारवाँ........

सिसकियों में,

बीत जाती है जिसकी पूरी रात सिसकियों में,
वो शख्स,
दिन के उजालों में सारेजहाँ को हँसाता फिरता हैं...!!!

आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।
पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है
ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।
क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।

इस शराबख़ाने में

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में

शराब कम कर दे

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे
गिरे पड़े हुए लफ़ज़ों को मोहतरमकर दे
ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो
इसी में उसका भला है ग़ुरूर कम कर दे
यहाँ लिबास, की क़मीत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
चमकने वाली है तहरीर मेरी क़िस्मत की
कोई चिराग़ की लौ को ज़रा सा कम कर दे
किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे

Chaand Mukammal Dekha..

Ankh Ney Raat Jab Tak Chaand Mukammal Dekha..
Phir Samander Ko B Hotey Hoay Pagal Dekha....

Raat Bhar Dair Tak Ki Teri Batain Khud Se...
Raat Phir Samne Tere Chehraa Pal Pal Dekha...

Aj Yadon Ki Ghata Toot K Barsi DIl Per...
Aj Hum Ney B Barasta Hoa Badal Dekha...

Hafza Cheen Liya Humse Ghum-e-Duniya Ne....
Aaj Hum Bhool Gaye Usey Jis Ko Kal Dekha....

Ik Larki Thi K Bhot Hansti Thi hum par
Aj Uski ANkhon Sey Bhi Behtaa Kajal Dekhaa....!!!!!!

ख़्वाबों की जगह

भर गये अश्क़ निग़ाहों में ख़्वाबों की जगह
रह गये शाख पे बस काँटे गुलाबों की जगह
रंगीनियाँ बाकी ना रहीं मर गईं हसरतें सारीं
नज़र में बेक़ैफ़ियत बची शबाबों की जगह
अल्फ़ाज़ रक्खे थे सँभाल के बस्ले -याराँ को
हरूफ रह गये ज़ुबाँ तक किताबों की जगह
वक़्ते रुखसत पे ना हम बोले ना वो बोले
रह गये ज़ेहन में सवाल जबाबों की जगह
जुस्तज़ू ज़िंदगी को थी सिमट गई ग़म में
छोटे दरवाज़ों ने जगह ली मेहराबों की जगह

Taptey huye sehra k

Paani ka zakheera bhi, maujood yahin hoga,,
Taptey huye sehra k, zarraat bataatey hen..

बेहोश दिल

जाग जा ओ मेरे बेहोश दिल --
देख जरा किसकी है ये आहट
आया है कोई तेरे दर पर ---
लगता है होगा कोई अनजान
भेज दे इसको वापिस ऐ दिल ---
नहीं तो फिर से मिलेगा तुझे दर्द
मैंने तो दे दी तुझे सलाह ---
ऐ दिल तेरा ही फैसला है अब

नया घर

चाहती तो हूँ नया घर बना लूँ
दरारों से भरें पुराने घर को गिरा दूँ
पर ये करूँ तो करूँ कैसे,क्योंकि...
पुराने रिश्ते दीवारों में ईंट से जड़े हुये है
पुराने घर में यादों की सिलन बहुत है
चाहती हूँ हर दरार मैं भर लूँ
हर गिरती दिवार को नया रंग कर दूँ
पर ये करूँ तो करूँ कैसे क्योंकि...
नये रिश्ते के मिट्टी-गारे की कीमत बहुत है
नये रिश्तों में शक की दिमक बहुत है

Monday, April 6, 2015

ऐ मौत जरा ठहर जा

ऐ मौत जरा ठहर जा अभी कि ,
साथ चलने को राजी नहीं अपना कोई ।
वादे मुताबिक फिर लौट आई पतझड,
फिर शाख से टूटकर गिरा है पत्ता कोई ।
देख तेरी एक जिद ने क्या हाल किया ,
कि न तेरा है आज न मेरा कोई ।
बहुत थक गया हूँ दुनिया के झमेलों से ,
चाँद ,क्या सोने की जगह है वहाँ कोई ।

तेरी यादों में

तेरी यादों में दिल मेरा उदास क्यूँ है
तू पराया होकर भी इतना ख़ास क्यूँ है
यूँ तो हैं दूरियां तेरे मेरे दरमियाँ बहुत
दूर होकर भी तू मेरे इतने पास क्यूँ है
ये क्या हुआ आज अचानक मुझको
इन आँखों में इतनी नमी आज क्यूँ है
दिल तोड़ दिया मेरा कांच की तरह तूने
क्यूँ है खफा मुझसे इतनी नाराज़ क्यूँ है
दिल तोडना तो फितरत नहीं थी कभी तेरी
फिर तेरा बदला बदला ये अंदाज़ क्यूँ है
जानता हूँ तू बिछड़ गया है अब न मिलेगा
फिर भी इस दिल को तेरी तलाश क्यूँ है

हैं दिल पर आज़ार कैसे कैसे

मैं क्या कहूँ, हैं दिल पर आज़ार कैसे कैसे
दुनिया करे हैं जीना दुश्वार कैसे कैसे
किस पर करें भरोसा,और किस की बात मानें
मिलते हैं हर क़दम पर ,मक्कार कैसे कैसे
रिश्तों की अहमियत का कुछ पास ही नहीं है
होते हैं ज़ेहनीयत के बीमार कैसे कैसे
फितरत में बेहयाई जिनकी रची बसी हैं
ईमान से है ख़ारिज अय्यार कैसे कैसे
दुनिया की क्या बताये तुमको फ़रेबकारी
होते हैं आदमीयत पे वार कैसे कैसे
नादान थे जो उनकी बातों में आ गए थे
यादों में हैं वो लम्हे दुश्वार कैसे कैसे

अजनबी की तरह मिला कोई

अजनबी की तरह मिला कोई
उस से करते भी क्या गिला कोई
इश्क़ का रोग जानलेवा है
इसकी होती नहीं दवा कोई
आज ये दिल बड़ा ही भारी है
मुझको अच्छी खबर सुना कोई
मैं अकेली थी ज़ात में अपनी
काश दे जाता हौसला कोई
दाम कोई न दे सका उसका
आज बेमोल बिक गया कोई
आईने में दरार है कितनी
कितने हिस्सों में बँट गया कोई
मेरी बर्बाद हो गयी दुनिया
दूर से देखता रहा कोई
चल सिया अब यहाँ से कूच करें
है यहाँ पर कहाँ सगा कोई

एक बादल रात भर बोता रहा

ज़िंदगी को आदमी ढोता रहा
बेख़बर इससे तू बस सोता रहा
इक उदासी की नदी बहती रही
इक समुन्दर उम्र भर रोता रहा
दूर तक ख़ामोशियाँ पसरी रहीं
देर तक उसका गुमां होता रहा
गीत धरती के सभी उसने लिखे
आदमी केवल यहाँ श्रोता रहा
शहर में रिश्ते नए मिलते गए
खुद से रिश्ता ही मगर खोता रहा
वादियों में आँसुओं की इक फसल
एक बादल रात भर बोता रहा

Ibadaton ki tarah

Ibadaton ki tarah main ye kaam karta huin,
Mera usool hai pahle salaam karta huin.....
Mukhalifat se miri shakhsiyat sanwarti hai,
Main dushmanon ka bada ehteram karta huin...
Main apni jeb mein apna pata nahin rakhta,
Safar mein sirf yahi ehtemam karta huin....
Main dar gaya huin bahut sayadaar pedon se....
Zara si dhoop bichhakar qayaam karta huin,
Mujhe khuda ne ghazal ka dayaar bakhsha hai....
Ye saltanat main mohabbat ke naam karta huin.

दुश्मनो की तरह

दुश्मनो की तरह उससे लडते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा खयाल आगया
फिर कई रोज तक बेखयाली रही

दुआओ की बरकते

कहाँ अब दुआओ की बरकते वो नसीहते वो हिदायते
ये जरूरतो का खलूस है ये मतलबो का सलाम है
यूँ ही रोज मिलने की आरजू बडी रखरखाव की गुफतुगू
ये शराफत नही बेगरज उसे आपसे कोई काम है

रुसवा होने न दिया

आग भी लगाई डाला पानी भी
हवा भी यूं दी की धुआँ उठने ना दिया
कुछ ऐसे ही चर्चा हुआ जमाने मे हमारा
नाम तो खूब किया रुसवा होने न दिया

ख्वाहिशे नही रही...

भरे बाजारो से अक्सर लौट आता हूँ खाली हाथ ही...
पहले पैसे नही थे..अब ख्वाहिशे नही रही...

Zabt Ki Duniya

Jaa Koi Aur Zabt Ki Duniya Talaash Kar...!!
Aye Ishq Ab Hum Tere Qabeel Nahi Rahe...!!

Zakhm

Main Nay Chaha Thaa ___ Zakhm Bhar Jain,,,,!
Zakhm Hi Zakhm Bhar Gaey ___ Mujh Main...

Saturday, April 4, 2015

कुछ एहसान चुकाने थे..!!

हम तो चलो दिवाने थे
तुम तो मगर सयाने थे
चिड़िया जाल न देख सकी
सिर्फ नज़र में दाने थे
लो वो फिर से रूठ गये
मुश्किल से तो माने थे
कुछ तो मेरी ग़ज़लें थी
कुछ उनके अफ़साने थे
हमने खुद को बेच दिया
कुछ एहसान चुकाने थे..!!

ये बादल

ये बादल न ,
छोटी सी बदली ;
पल पल छाया,
अदली बदली;
एक पल की दे,
कर शीतलता
आंसू सी झर '
झर बरसी !

किनारा


समझो एक किनारा हूँ जिसका नहीं सहारा है
नदी बनाओ या पगडंडी मिलता नही किनारा है
दगरा और समनदर भी तो कबसे वे सहारा हैं
देव देखते आये अब तक दोस्त भी करें किनारा हैं

भीख की सीख
भीख की जरूरत क्यों पडी जो मांगनी पडी
लक्ष्मण रेखा बाद भी सीता आगे क्यों बढ़ीं
पारस जी आपने संस्था तलसवाई क्या पड़ी
मांगने वाले वच्चों की जांच क्यों नही बढ़ी
सही बात है हमारे देश में भीख शर्मनाक नही
दान पुण्य माना गया पर लेने पर आफत पडी
कबीर दाश ने जो लिखा जिन मुख निकसत नाहि
देव आज हैं लिख रहे मांगन की चो लति पडी
(वे सब नर मर चुके जो कहूँ मांगन जाहि
उनसे पहले वे मुए जिन मुख निकसति नाहिं )
फेसबुक दोस्त
दोस्ती करने की तलब है
खैनी रगड़े कोण तलब है
दूर से तो सही कोई सुन्दर
नजदीक देखा वो तलब है
हाय लिखा हेलो लिखा नमश्कार प्रणाम राम लिखा
इनबॉक्स से उत्तर नहीं मिला तो फिर पोस्ट ही लिखा
समझदारी देखो कितनी की अपना तो सब कुछ लिखा
पूछना क्या था छोड़ा दोस्त बनाने का कारन नहीं लिखा
हँसी खुशी वो बोली लाइन लम्बी है
दोस्ती की मांग करनी अभी जल्दी है
कल तक ९५० अनुरोधिकाएँ लम्बित हैं
बोलो तुम्हें क्या कहना है अभी जल्दी है
देर नहीं की देव ने अमित्र लिखने में
सफर तय करना था बहुत लिखने में
हो जो गूंगा और ऊपर से जल्दी में
दोस्त रह कैसे सकता है लिखने में
राग अलापने ......
अब सवाल जवाव का समय कहाँ हम गांधी को ढूंढने लगे
भारत माँ की तुलना राजनैतिक दल के नेताओं से करने लगे
जन प्रतिनिधि को पढ़े लिखे भी वे एक प्रतिनिधि कहने लगे
समस्या को विकास का मुद्दा और विकासको अभिशाप कहने लगे
ओम नमः शिवाय की जगह राजा और रंक की तुलना करने लगे
देव विनती मानिए आपदा के समय ये क्या कोण सा राग अलापने लगे
और ....
नमस्कार वो व्यस्त कम अस्त ज्यादा हैं
समय हैं राम राम कहने का वे जपते हैं

तुम्हारा ही हिस्सा हु मैं

नफरत करोगे तो अधुरा किस्सा हूँ मै....!

मुहब्बत करोगे तो तुम्हारा ही हिस्सा हु मैं....

meri zindagi ka sawal hai...!

meri be-basi , meri iltija , mere zabt-e-ahh pe nazar toh kar...
mujhy muskura k na taal tu, meri zindagi ka sawal hai...!

Thursday, April 2, 2015

शाख से टूटे हुए

शाख से टूटे हुए....पत्ते जैसी है ज़िन्दगी..!
सुख दुःख की हवा के झोंके खिलवाड़ करते है..!!
"शोहरत बेशक चुपचाप गुजर जाए..!
कमबख्त..बदनामी बड़ा शोर करती है..!!"
"कभी तुझमे पलती है, कभी मुझमे पलती है..!
ख्वाहिशें.....कभी भी बेघर नही होती....!!"
"किस से करूं अपने दर्द की शिकायत.!
यहां दवा की शीशी मे जहर बिकता है..!!"
"कितनी मासूम होती है ये दिल की धड़कनें..!
कोई सुने ना सुने...ये खामोश नही रहती..!!"

Chupky chupky teri yad me

Chupky chupky teri yad me jalty rahe hum.
Tu ne yad na kiya tujy yad karty rahe hum.
Na tujy khabar howi na zamana samj saka.
Teri yad me din rat karvateen
badalty rahe hum.
Hum he the k tujy bhula na saky.
Tamam omar khush raho tum ye dua karty rahe hum...

रुसवाई

मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती,
यह कालिख उम्र भर रहती है साबुन से नहीं जाती !

पल में गुजरती रही

वक्त से गिरते लम्हे, ,,
लम्हों से गिरते पल,
इक पल की थी जिंदगी
पल में गुजरती रही ।

Wednesday, April 1, 2015

सुनहरा जाम हो जाए

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए
मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए

अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए
समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए

Meri ZaaT Se

Batoon Ke HaR Jawab Main iK MukhTasir Si Haan,,,,!
Lagta Hay Meri ZaaT Se UkTa Gaye Ho Tum....*

क्यूँ ख्वाब मे

फिर नींद से जाग कर आस-पास ढ़ूढ़ता हूँ तुम्हें...
क्यूँ ख्वाब मे इतने पास आ जाती हो तुम....

Mai'n bahot Dino se udaas hu'

Usi ishq se,
Usi chaah se,
Usi pyar se,
Usi maan se,,
Mujhe aaj phir se milo na tum.
Mai'n bahot Dino se udaas hu'n,,,,,

वजूद

उसने मिरे वजूद को स्वीकार तो किया।
नफ़रत का ही सही चलो इज़हार तो किया।
नीयत बिगाड़ने को प्रलोभन हज़ार हैं ,
दो-चार बार हमने भी इन्कार तो किया।
वो छूट जायँ बेल पे, ये और बात है ,
फ़ौरन ही मुल्ज़िमो को गिरिफ़्तार तो किया।
हम तो चुनाव हार के भी खुश हैं सोचकर ,
हमने फ़लाँ का रास्ता दुश्वार तो किया।
क़ातिल है इश्क़, मार ही देता तुझे 'नया' ,
इस वाइरस ने छोड़ा प बीमार तो किया।

Muhaabat K Haadsay

Kis Darja Shakin Thy Muhaabat K Haadsay
Hum Zindagi Mian Phir Koi Armaan Na KAr SakAY

Us k shehar ka pani

Mat pooch us k mekhane ka pata E SAAQI
Us k shehar ka to pani b nasha deta hai

ज़िन्दगी का फलसफा

ज़िन्दगी का फलसफा
बुलंदियों को छू जाने का हौसला है...
हर मुश्किल से लड़ जाने का जज़्बा है...
हर अंधरे में उजाले को पाने की चाह है....
खुद पे पूरा विश्वास है...
हर इंसान की होती खुद्की दास्ताँ है ....
फिर भी हर कोई ढूंढ राहा खुद्की पहचान है...
ज़िन्दगी हर पल यहाँ एक सीख है...
हार के बाद भी यहाँ जीत है...
हर लड़ाई से लड़ जाना ही रीत है...
जीवन का हर फलसफा यहाँ लगता कोई नया गीत है...

ये मासअला बड़ा नाज़ुक है

मेरी ज़ुबान पे नये ज़ायकों के फल लिख दे
मेरे खुदा तू मेरे नाम इक ग़ज़ल लिख दे
मैं चाहता हूँ ये दुनियाँ,वो चाहता है मुझे
ये मासअला बड़ा नाज़ुक है कोई हल लिख दे
ये आज जिस का है,उस को मुबारक़ हो
मेरी ज़बीन पे मेरे आँसुओं से कल लिख दे
हवा की तरह मैं बेताब हूँ कि शाख-ए-गुलाब
जो रेगज़ारों (deserts) पे तालाब के कंवल लिख दे
मैं एक लम्हे में दुनियाँ समेत सकता हूँ
तू कब मिले गा अकेले में एक पल लिख दे ... !!!

Ittefaaqan

Ittefaaqan Mil Jaate Ho Jab Tum Raah Mein Kabhi,
Yu Lagta Hai Qareeb Se Zindagi Ja Rahi Ho Jaise...!!!!!